बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान की रणनीति साफ होती जा रही है। वे सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि खुद को बिहार के सर्वमान्य चेहरे के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं।उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) अब खुद को बिहारी फर्स्ट विचारधारा के तहत एक विकल्प के रूप में पेश कर रही है न सिर्फ पिछड़ों या दलितों के लिए, बल्कि सभी वर्गों के लिए।
सामान्य सीट से लड़ने की वजह क्या है?
चिराग पासवान ने चुनाव में सामान्य (अनारक्षित) सीट से उतरने का इरादा जताया है।इसका मकसद यह दिखाना है कि वे सिर्फ एक जाति या वर्ग के नेता नहीं हैं।बल्कि, उनकी नजर हर वोटर और पूरे बिहार पर है।यह संदेश देना कि “चिराग सबका नेता बनना चाहते हैं, सिर्फ कुछ का नहीं।चिराग का नया नारा “बिहारी फर्स्ट, बिहार फर्स्ट” उनके पूरे अभियान की रीढ़ बन चुका है।इसका मतलब साफ है पहचान की राजनीति से ऊपर उठकर विकास की राजनीति बिहारी युवाओं के लिए रोजगार, शिक्षा और सम्मान
NDA के साथ लेकिन खुद की जमीन पर
चिराग पासवान NDA के सहयोगी जरूर हैं, लेकिन वह खुद की स्वतंत्र राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं।उनकी ये कोशिश रामविलास पासवान की विरासत को आधुनिक संदर्भ में पेश करने की है।ऐसे में सवाल यह उठता है क्या चिराग खुद को नीतीश और तेजस्वी के मुकाबले में खड़ा कर पाएंगे?बिहार की सियासत में चिराग पासवान एक नई धुरी बनाना चाहते हैं।सामान्य सीट से चुनाव लड़कर वे जातीय खांचों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।अब देखना ये है कि जनता इस रणनीति को किस तरह से देखती है। क्या चिराग एक वर्ग के नेता से आगे बढ़कर “बिहार के नेता” बन पाएंगे?

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