24 जून 2025 को आयोजित ‘आपातकाल के 50 वर्ष’ के कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah Emergency Speech) ने कांग्रेस पार्टी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि भारत के लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय 1975 में आया जब बिना किसी संसद या कैबिनेट की मंजूरी के आपातकाल (Emergency 1975) लगा दिया गया।
अमित शाह का आपातकाल पर तंज: लोकतंत्र का गला घोंटना
अमित शाह ने याद दिलाया कि इंदिरा गांधी ने सुबह 8 बजे ऑल इंडिया रेडियो के जरिए आपातकाल लागू करने की घोषणा की थी, लेकिन इससे पहले न संसद की मंजूरी ली गई, न कैबिनेट की बैठक बुलाई गई और न ही विपक्ष को कोई भरोसा दिया गया।
शाह ने कहा कि यह कदम सत्ता बचाने के लिए लिया गया था, न कि देश की सुरक्षा के लिए, जैसा कि बाद में बताया गया।
उन्होंने आरोप लगाया कि उस वक्त इंदिरा गांधी संसद सदस्य तक नहीं थीं और वोट देने का अधिकार भी नहीं था, बावजूद इसके उन्होंने नैतिकता को दरकिनार कर प्रधानमंत्री पद नहीं छोड़ा। अमित शाह ने कहा, “इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नष्ट कर दिया।“
आपातकाल के दौरान लोकतंत्र का हनन: गिरफ्तारियां, प्रेस सेंसरशिप और नागरिक अधिकारों का दमन
कार्यक्रम में अमित शाह ने विस्तार से बताया कि उस दौर में किस तरह से कांग्रेस ने राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाला, प्रेस की आज़ादी को सीमित किया और नागरिक अधिकारों का जमकर उल्लंघन किया गया।
उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान न्यायपालिका पर भी दबाव बनाया गया और संविधान की आत्मा को कुचला गया।
शाह ने यह भी सवाल उठाया कि जो आज लोकतंत्र की रक्षा की बात करते हैं, वे 1975 की प्रेस सेंसरशिप और मीडिया दमन पर क्यों चुप थे?
कांग्रेस पर हमला: लोकतंत्र की दुहाई और अतीत का सामना
अमित शाह ने कांग्रेस की इस बात पर भी तीखी टिप्पणी की कि वह अब लोकतंत्र की बात करती है, लेकिन अपने अतीत से आंखें क्यों मूंदे हुए है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस को यह याद रखना चाहिए कि जिसने कभी लोकतंत्र को दमन किया, वह लोकतंत्र की रक्षा कैसे कर सकती है?
यह बयान वर्तमान राजनीतिक माहौल में नए सिरे से बहस को जन्म दे रहा है।
बीजेपी इसे कांग्रेस के लिए स्थायी दाग के रूप में देखती है, जबकि कांग्रेस इसे उस समय की परिस्थितियों से जोड़ती है।
आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर राजनीतिक बहस का नया दौर
आपातकाल पर राजनीतिक बहस कोई नई बात नहीं है, लेकिन 50 साल पूरे होने पर यह चर्चा फिर से गरमाई है।
अमित शाह के बयान ने कांग्रेस के अतीत को फिर से सार्वजनिक विमर्श में ला दिया है और लोकतंत्र के मौजूदा स्वरूप पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
लोकतंत्र केवल चुनाव जीतना नहीं, बल्कि जवाबदेही, पारदर्शिता और जनहित के लिए सत्ता का सही उपयोग भी है। इतिहास में दर्ज ऐसे काले अध्याय को भूलना मुमकिन नहीं।
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