25 जून 1975, भारतीय लोकतंत्र का वो दिन जब पूरी व्यवस्था एक झटके में थम गई। देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बिना कैबिनेट की बैठक बुलाए, बिना संसद को सूचना दिए, आपातकाल (Emergency in India) लागू कर दिया। इस ऐतिहासिक घटना को आज 50 साल पूरे हो चुके हैं, और देश इसे एक बार फिर “संविधान हत्या दिवस” के रूप में याद कर रहा है।
क्या हुआ था 25 जून 1975 को?
इस दिन, देर रात ऑल इंडिया रेडियो से देशवासियों को बताया गया कि देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है। इसका तात्कालिक कारण राष्ट्रीय सुरक्षा बताया गया, लेकिन असल वजह थी – इंदिरा गांधी का सत्ता से चिपके रहना, क्योंकि उसी दिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनके चुनाव को अवैध करार दिया था।
आपातकाल की अवधि (जून 1975 – मार्च 1977) में:
- प्रेस की स्वतंत्रता (Press Censorship) खत्म कर दी गई।
- हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं, छात्रों, पत्रकारों को बिना मुकदमे जेल में डाल दिया गया।
- संसद का स्वरूप एकतरफा हो गया और सत्ता केवल एक परिवार के इर्द-गिर्द सिमट गई।
प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह का तीखा हमला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर सोशल मीडिया पर लिखा कि “आपातकाल ने भारत के संविधान और लोकतंत्र को गहरी चोट पहुंचाई। लाखों लोगों को जेल में डाल दिया गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो सत्ता के खिलाफ बोले।”
गृह मंत्री अमित शाह ने इंदिरा गांधी और कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा: “न संसद की मंजूरी ली गई, न विपक्ष को बताया गया और न कैबिनेट से सलाह-मशविरा किया गया। ऑल इंडिया रेडियो से सीधा ऐलान कर दिया गया कि अब लोकतंत्र खत्म।”
अमित शाह ने यह भी कहा कि गांधी परिवार ने आज तक देश से माफी नहीं मांगी है, और यह घटना भारत के लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला थी।
विपक्ष की आवाज़ और लोकतंत्र की बहाली
आपातकाल के उस अंधेरे दौर में भी जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने सरकार के खिलाफ आवाज़ बुलंद की और लोकतंत्र की लड़ाई लड़ी।
जनता पार्टी के नेतृत्व में हुए चुनावों में कांग्रेस को करारी हार मिली और लोकतंत्र की बहाली हुई।
BJP प्रवक्ताओं का गांधी परिवार पर हमला
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने कहा कि “आज भी कांग्रेस पार्टी माफी मांगने से बच रही है। यह वही परिवार है जिसने लोकतंत्र को कुचला, संविधान की आत्मा को रौंदा और लाखों लोगों को जेल में डाल दिया।”
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि यह इतिहास का काला अध्याय था जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
कांग्रेस की चुप्पी या रणनीति?
कांग्रेस पार्टी अब तक इस पर कोई औपचारिक माफी नहीं दे पाई है। पार्टी का तर्क है कि वह “अतीत से आगे बढ़ना चाहती है और वर्तमान पर ध्यान देना चाहती है।” लेकिन सवाल उठता है – क्या लोकतंत्र के साथ हुई ज्यादती को भुला कर आगे बढ़ा जा सकता है?
50 साल बाद भी ज़िंदा बहस
आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ एक ऐसा मौका है, जब देश को यह सोचने की ज़रूरत है कि कैसे एक लोकतांत्रिक व्यवस्था व्यक्तिवाद और सत्ता के लोभ में कुचली जा सकती है।
आज जब हम सोशल मीडिया, प्रेस की आज़ादी और राजनीतिक अभिव्यक्ति की बात करते हैं, तब इस इतिहास से सीख लेना ज़रूरी है।
संबंधित पोस्ट
कांग्रेस का केंद्र सरकार पर हमला: ट्रंप के दावों पर विवाद
लोकसभा में हिंदी-इंग्लिश विवाद और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा
INDIA गठबंधन से आम आदमी पार्टी की दूरी, केजरीवाल की नई सियासी चाल या विपक्ष में दरार?