टैरिफ नीति का उल्टा असर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश को कर्ज के जाल से मुक्त करने के लिए विदेशी सामानों पर भारी टैरिफ लगाए हैं। अप्रैल 2025 में 10% टैरिफ लागू करने के बाद से अमेरिका में आर्थिक संकट गहराता दिख रहा है। इस साल अब तक 446 बड़ी कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं, जो 2020 के कोरोना काल से 12% अधिक है। जुलाई 2025 में अकेले 71 कंपनियां दिवालिया हुईं, जो जुलाई 2020 के बाद एक महीने में सबसे ज्यादा है। टैरिफ नीति का असर स्मॉलकैप कंपनियों पर सबसे ज्यादा पड़ा है, जहां रसेल 2000 इंडेक्स में 43% कंपनियां नुकसान में हैं। यह आंकड़ा 2008 के वित्तीय संकट (41%) से भी ज्यादा है। अमेरिका का इफेक्टिव टैरिफ रेट 17.3% है, जो 1935 के बाद सबसे अधिक है।
सेक्टर-वार दिवालियापन
टैरिफ का असर विभिन्न सेक्टर्स पर स्पष्ट दिख रहा है। इस साल इंडस्ट्रियल सेक्टर की 70 कंपनियां, कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी सेक्टर की 61, हेल्थकेयर की 32, कंज्यूमर स्टैपल्स की 22, और आईटी सेक्टर की 21 कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं। इसके अलावा, फाइनेंशियल (13), रियल एस्टेट (11), कम्युनिकेशन सर्विसेज (11), मटीरियल्स (7), और यूटिलिटीज व एनर्जी सेक्टर (4) की कंपनियां भी इस संकट से नहीं बच पाईं। इनमें Forever 21, Joann’s, Rite Aid, Party City और Claire’s जैसे लोकप्रिय ब्रांड शामिल हैं, जो 1990 और 2000 के दशक में चर्चित थे।
बेरोजगारी और महंगाई का खतरा
टैरिफ नीति से अमेरिका में बेरोजगारी और महंगाई बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है। जुलाई में 11% छोटी कंपनियों ने बिक्री में भारी गिरावट की शिकायत की, जो बेरोजगारी का एक प्रमुख संकेतक है। अमेरिका में छोटी कंपनियां 6.23 करोड़ लोगों (45.9% कार्यबल) को रोजगार देती हैं। 20-24 आयु वर्ग के युवाओं में बेरोजगारी दर पिछले तीन महीनों में औसतन 8.1% रही, जो 2008 के स्तर पर है। कंपनियां लागत कम करने के लिए एआई का उपयोग कर रही हैं, जिससे एंट्री-लेवल नौकरियों में कटौती हो रही है।
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महंगाई और ब्याज दरों पर दबाव
महंगाई भी फिर से सिर उठा रही है। पीपीआई (प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स) में 0.9% की तेजी आई है, जो 2022 के बाद सबसे अधिक है। कोर सीपीआई (कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स) भी 3% से ऊपर पहुंच गया है। इससे फेडरल रिजर्व के लिए ब्याज दरों में कटौती करना चुनौतीपूर्ण हो गया है, हालांकि ट्रंप लगातार इसकी मांग कर रहे हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि सितंबर 2025 में ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती हो सकती है।
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