August 28, 2025

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2026: बीजेपी की नई रणनीति

पश्चिम बंगाल में अप्रैल-मई 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और उसकी नेता ममता बनर्जी को चुनौती देने के लिए नई रणनीति तैयार की है। इस रणनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ समन्वय, भ्रष्टाचार पर जोर, और ध्रुवीकरण की राजनीति शामिल है। आइए, बीजेपी की इस रणनीति के प्रमुख बिंदुओं का विश्लेषण करें।

ममता बनर्जी के सामने बीजेपी की चुनौती

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी टीएमसी की सबसे बड़ी ताकत हैं। उनकी लोकप्रियता और जननेता की छवि को चुनौती देना बीजेपी के लिए आसान नहीं है। पार्टी में सुवेंदु अधिकारी, शमिक भट्टाचार्य, और सुकांत मजूमदार जैसे नेता हैं, लेकिन कोई भी ममता के कद का नहीं है। इसलिए, बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना चेहरा बनाकर ‘मोदी की गारंटी’ को प्रचारित करने का फैसला किया है। यह नारा बंगाल में विकास और बदलाव का प्रतीक बन सकता है।

मोदी की गारंटी और संगठनात्मक रणनीति

बीजेपी ‘मोदी है तो मुमकिन है’ के नारे को पुनर्जनन देकर बंगाल में नई उम्मीद जगाने की कोशिश कर रही है। पिछले चुनावों में संगठनात्मक कमजोरी के कारण बीजेपी हर गांव तक नहीं पहुंच पाई थी। इस बार, पार्टी स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर जमीनी स्तर पर काम कर रही है। सोशल मीडिया, व्लॉग, पॉडकास्ट, और स्थानीय विज्ञापनों के जरिए बीजेपी अपनी पहुंच बढ़ा रही है। आरएसएस के साथ मिलकर जिला-स्तरीय कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया जा रहा है, ताकि हर बूथ तक संदेश पहुंचे।

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भ्रष्टाचार और शासन पर हमला

बीजेपी ममता बनर्जी पर व्यक्तिगत हमले से बच रही है, लेकिन टीएमसी सरकार के कथित भ्रष्टाचार और खराब शासन को निशाना बना रही है। पार्टी का दावा है कि टीएमसी भ्रष्टाचार को ‘वाशिंग मशीन’ की तरह पेश करती है। बीजेपी मतदाता सूची में संशोधन की मांग भी कर रही है, यह दावा करते हुए कि इसमें कई मृत मतदाता शामिल हैं। यह रणनीति मतदाताओं में असंतोष पैदा करने का प्रयास है।

हिंदुत्व की जगह विकास पर जोर

पिछले चुनावों में ‘जय श्री राम’ का नारा बंगाल में असरदार नहीं रहा। बीजेपी ने अब हिंदुत्व के बजाय विकास, कानून-व्यवस्था, और ‘घुसपैठ’ जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। मोदी ने अपनी रैलियों में ‘जय मां काली’ और ‘जय मां दुर्गा’ जैसे नारे लगाकर स्थानीय संस्कृति से जुड़ने की कोशिश की है। साथ ही, ध्रुवीकरण की राजनीति के जरिए हिंदू-मुस्लिम वोटों को प्रभावित करने की रणनीति भी अपनाई जा रही है।

बीजेपी-आरएसएस का मजबूत तालमेल

पिछले चुनावों में बीजेपी और आरएसएस के बीच समन्वय की कमी थी। इस बार, आरएसएस के कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर घर-घर अभियान, बुद्धिजीवियों से बैठकें, और ‘शाखा’ सभाओं के जरिए बीजेपी को मजबूती दे रहे हैं। यह तालमेल ममता बनर्जी के शासन को चुनौती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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