उत्तर प्रदेश के चार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में लागू 79% आरक्षण नीति को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है। कन्नौज, सहारनपुर, जालौन और अंबेडकर नगर के मेडिकल कॉलेजों में SC-ST-OBC के लिए कुल 79% सीटें आरक्षित थीं, जबकि केवल 21% सीटें सामान्य वर्ग के लिए छोड़ी गई थीं। इस आरक्षण व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट के 1992 के इंदिरा साहनी केस के निर्देशों के खिलाफ माना गया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती।
NEET 2025 काउंसलिंग पर प्रभाव
कोर्ट ने निर्देश दिया है कि NEET 2025 की काउंसलिंग प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जाए और आरक्षण को 2006 के केंद्रीय आरक्षण अधिनियम के अनुसार लागू किया जाए। इसके तहत SC के लिए 21%, ST के लिए 2% और OBC के लिए 27% आरक्षण रहेगा। इसका मतलब है कि जो छात्र पहले 79% आरक्षण के आधार पर अपनी सीट पाकर खुश थे, उन्हें अब फिर से काउंसलिंग में भाग लेना होगा।
79% आरक्षण व्यवस्था क्यों हुई विवादित?
उत्तर प्रदेश सरकार ने सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से SC, ST और OBC वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाकर कुल 79% कर दी थी। इसका मकसद पिछड़े वर्गों को अधिक प्रतिनिधित्व देना था, लेकिन यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा आरक्षण सीमा के नियमों के खिलाफ था। इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस नीति को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी केस का संदर्भ
1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी बनाम राज्य केरल केस में यह तय किया था कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% होनी चाहिए, ताकि समाज में समानता और न्याय बना रहे। इस फैसले का आधार यह था कि आरक्षण का उद्देश्य पिछड़े वर्गों को अवसर देना है, लेकिन इसकी सीमा पार करने पर अन्य वर्गों के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
अब क्या होगा NEET 2025 के अभ्यर्थियों का?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद NEET 2025 की काउंसलिंग प्रक्रिया में बदलाव आएगा। जो छात्र आरक्षण के तहत अपनी सीट पाकर आगे बढ़ रहे थे, उन्हें अब पुनः काउंसलिंग में शामिल होकर अपनी सीट के लिए प्रतिस्पर्धा करनी होगी। यह फैसला छात्रों के लिए असमंजस और तनाव का कारण बन सकता है।
आपकी क्या राय है?
आरक्षण सामाजिक न्याय का एक महत्वपूर्ण हथियार है, लेकिन इसकी सीमा और लागू करने का तरीका भी न्यायसंगत होना चाहिए। क्या आपको लगता है कि 50% की सीमा उचित है, या कुछ राज्यों को विशेष परिस्थिति के कारण अधिक आरक्षण की अनुमति मिलनी चाहिए? नीचे कमेंट में अपनी राय साझा करें। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला भारत में आरक्षण नीति की सीमाओं और न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी को दर्शाता है। NEET 2025 काउंसलिंग में इसका प्रभाव व्यापक होगा और छात्रों के भविष्य को प्रभावित करेगा। इसलिए इस मामले में न्याय और सामाजिक संतुलन दोनों को ध्यान में रखना बेहद आवश्यक है।
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