भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर चल रही तनातनी अब धीरे-धीरे सुलझती दिखाई दे रही है। 16 सितंबर को दिल्ली में करीब 7 घंटे चली एक महत्वपूर्ण बैठक ने दोनों देशों के बीच बातचीत को एक नई दिशा दी है। अमेरिका की ओर से असिस्टेंट ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव और भारत की ओर से वाणिज्य मंत्रालय के विशेष सचिव राजेश अग्रवाल ने इसमें हिस्सा लिया।
बैठक रही सकारात्मक और भविष्योन्मुखी
हालांकि यह बैठक किसी आधिकारिक व्यापार वार्ता का हिस्सा नहीं थी, लेकिन दोनों ही पक्षों ने इसे “सकारात्मक” और “भविष्योन्मुखी” बताया। इसका मतलब यह है कि आने वाले महीनों में दोनों देश व्यापारिक मतभेदों को कम करने के लिए ठोस कदम उठा सकते हैं।
टैरिफ विवाद की पृष्ठभूमि
दरअसल, यह बातचीत उस टैरिफ विवाद के बाद हो रही है, जिसमें अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 50% तक अतिरिक्त शुल्क लगा दिया था।पहले 25% शुल्क सामान्य व्यापार विवादों के चलते लगाया गया। बाद में रूस से भारत के कच्चे तेल आयात को लेकर और 25% बढ़ा दिया गया। इससे भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में ठंडापन आ गया और दोनों देशों के कारोबारी रिश्तों पर असर पड़ा।
अंतरिम व्यापार समझौते पर काम
अब दोनों देश एक अंतरिम व्यापार समझौते (interim trade deal) पर काम कर रहे हैं। यह समझौता फिलहाल शुरुआती स्तर पर है, लेकिन इसे लेकर उत्साह साफ दिखाई दे रहा है। अगर यह डील होती है तो भारत और अमेरिका के बीच न केवल व्यापार आसान होगा, बल्कि निवेश और तकनीकी सहयोग के नए रास्ते भी खुलेंगे।
चुनौती कृषि और डेयरी सेक्टर
हालांकि, सभी मुद्दे आसान नहीं हैं। अमेरिका लगातार भारत से कृषि और डेयरी सेक्टर को विदेशी निवेश और आयात के लिए खोलने की मांग कर रहा है। भारत इस पर सतर्क है क्योंकि ये सेक्टर करोड़ों किसानों और डेयरी उत्पादकों की आजीविका से जुड़े हैं। किसी भी तरह की जल्दबाजी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है।
भू-राजनीतिक महत्व
अगर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता होता है तो इसका फायदा सिर्फ कारोबारी क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा। यह समझौता दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी और भू-राजनीतिक स्थिरता को भी मजबूत करेगा। चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत और वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत-अमेरिका सहयोग का मजबूत होना बेहद अहम है।

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