आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में साफ चेतावनी दी है कि देश के भीतर और बाहर ऐसी शक्तियाँ सक्रिय हैं जो भारत की एकता को तोड़ना चाहती हैं।भागवत ने विशेष रूप से नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश का ज़िक्र किया, जहां हाल के वर्षों में जनरेशन Z के नेतृत्व में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए और बड़े नेता अपनी कुर्सी छोड़कर भागने को मजबूर हुए।उनका संदेश स्पष्ट था अगर हम सतर्क न हुए, तो ऐसे हालात भारत में भी पैदा करने की कोशिश हो सकती है।
पड़ोसी देशों के हालात और चेतावनी का महत्व
भागवत ने यह टिप्पणी ऐसे समय में दी है जब भारत सीमा सुरक्षा, सामाजिक ताने-बाने और राजनीतिक स्थिरता जैसे कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है।पड़ोसी देशों में विरोध प्रदर्शन और हिंसा ने यह दिखा दिया कि सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता कैसे बड़े संकट में बदल सकती है।इसलिए उनकी चेतावनी केवल भविष्य की संभावना नहीं, बल्कि वास्तविक खतरे की चेतावनी भी है।
वैश्विक संघर्ष और भारत पर असर
वैश्विक संघर्षों और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक गतिशीलताओं का असर भारत की राजनीति और समाज पर भी साफ देखा जा सकता है।
भागवत के अनुसार, विदेशी ताकतें भारत को बाधित करने की साजिश रच सकती हैं, जो देश की आंतरिक स्थिरता और एकता के लिए चुनौती बन सकती हैं।ऐसी स्थिति में यह सवाल उठता है कि हमारी सबसे बड़ी ताकत क्या हो सकती है और भारत इस चुनौती से कैसे निपट सकता है।
भारत की तैयारी और एकता की आवश्यकता
भागवत का मानना है कि देश की एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।सत्ताधारी और नागरिकों को मिलकर सामाजिक जागरूकता, सीमाओं की सुरक्षा और आंतरिक एकता पर ध्यान देने की आवश्यकता है।राजनीतिक, सामाजिक और कूटनीतिक स्तर पर कदम उठाने से ही भारत विदेशी और आंतरिक खतरों का सामना कर सकता है।

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