अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति को लेकर एक बार फिर चिंता बढ़ गई है। हाल ही में अफगान विदेश मंत्री की प्रेस ब्रिफिंग में महिला पत्रकारों को शामिल नहीं किया गया। भारतीय पत्रकारों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन वहां कोई भी महिला पत्रकार मौजूद नहीं थी। तालिबान सरकार ने महिला मीडिया कर्मियों के साथ सीधे संवाद करने से इनकार कर दिया, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठने लगे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम महिलाओं के अधिकारों और मीडिया की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा है। अफगान महिलाओं की स्थिति पहले से ही चिंताजनक है, और मीडिया से उनका बहिष्कार इस असमानता को और बढ़ा रहा है।
तालिबान का कदम और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
तालिबान की यह नीति केवल मीडिया के स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह सीधे अफगान महिलाओं के अधिकारों पर हमला है। पत्रकारों और मीडिया हाउस ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है। अंतरराष्ट्रीय संगठन और मानवाधिकार संस्थाएं तालिबान पर दबाव बना रही हैं कि वे महिला पत्रकारों और अन्य पेशेवर महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करें।
विशेषज्ञों का कहना है कि महिला पत्रकारों को संवाद से अलग करना सिर्फ़ अफगान समाज में असमानता को बढ़ा रहा है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी चिंता का विषय है। मीडिया की स्वतंत्रता और महिला अधिकारों की अनदेखी, दोनों ही लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
महिला अधिकार और शिक्षा में बाधाएं
तालिबान के शासन में अफगान महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और मीडिया में भागीदारी लगातार सीमित होती जा रही है। महिलाओं को स्कूल और उच्च शिक्षा से रोका जा रहा है। नौकरी और पेशेवर अवसरों पर प्रतिबंध समाज में असमानता बढ़ा रहे हैं। महिला पत्रकारों को प्रेस ब्रिफिंग से बाहर रखना, इसी असमानता का एक स्पष्ट उदाहरण है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर महिला अधिकारों को नजरअंदाज किया गया, तो अफगान समाज में लैंगिक असमानता और बढ़ेगी। शिक्षा और मीडिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि समाज में महिलाओं की आवाज़ और प्रभाव बना रहे।
मीडिया हाउस और पत्रकारों की प्रतिक्रिया
अफगान महिला पत्रकारों के बहिष्कार ने मीडिया में खलबली मचा दी है। पत्रकारों ने बताया कि यह कदम सीधे तौर पर महिलाओं के अधिकारों की अनदेखी है। मीडिया हाउस और अंतरराष्ट्रीय पत्रकार संगठन तालिबान के इस रवैये की आलोचना कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि मीडिया में महिलाओं की भागीदारी समाज में बदलाव लाने और लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखने के लिए जरूरी है। अफगानिस्तान में महिला पत्रकारों को शामिल न करना, समाज और मीडिया दोनों के लिए नुकसानदेह है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस कदम को गंभीर रूप से देखा जा रहा है। मानवाधिकार संगठन, पत्रकार संघ और विभिन्न देशों ने तालिबान से आग्रह किया है कि वे महिला पत्रकारों और पेशेवर महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करें। तालिबान के इस रवैये से अफगानिस्तान का अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठान भी प्रभावित हो रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह स्थिति जारी रही, तो अफगान महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्रता पर गंभीर असर पड़ेगा। मीडिया की स्वतंत्रता और महिला अधिकार, दोनों ही लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार हैं, और इनकी अनदेखी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफगानिस्तान की छवि को कमजोर करेगी।
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