November 13, 2025

प्रशांत किशोर की 241 करोड़ की कमाई: राजनीतिक सलाहकार का ‘ट्रांसपेरेंट’ बिजनेस या सवालों की बौछार?

राजनीति के ‘स्ट्रैटेजिस्ट’ का उदय

प्रशांत किशोर, जिन्हें दुनिया ‘पीके’ के नाम से जानती है, राजनीति के उस नंबर गेम के मास्टरमाइंड हैं, जहां जीत की रणनीति ही सबसे बड़ा हथियार है। 2011 में संयुक्त राष्ट्र से राजनीति में कूदे पीके ने 2012 में गुजरात चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत की नींव रखी। फिर 2014 लोकसभा, 2015 बिहार (नीतीश कुमार के साथ), 2016 पश्चिम बंगाल (ममता बनर्जी), 2019 आंध्र प्रदेश (जगन मोहन रेड्डी) और 2021 में फिर बंगाल—हर बार उनके क्लाइंट जीते। अब जन सुराज पार्टी के संस्थापक के रूप में बिहार की 2025 विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी 241 करोड़ की कमाई ने सबकी भौंहें चढ़ा दी हैं। यह रकम तीन साल (2021-2024) की कंसल्टेंसी फीस से आई, जो राजनीति की नई इंडस्ट्री का आईना लगती है।

I-PAC: स्ट्रैटेजी का ‘बिजनेस मॉडल’

पीके की कंपनी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (I-PAC) राजनीतिक कैंपेन का ‘कॉन्ट्रैक्ट बेस्ड’ मॉडल है। IIT-IIM ग्रेजुएट्स की टीम डेटा एनालिटिक्स, सोशल मीडिया और ग्राउंड वर्क से पार्टियों को जीत दिलाती है। मोदी के ‘चाय पे चर्चा’ से लेकर ममता की ‘दुआ कलम तीर’ तक—I-PAC ने सब डिजाइन किया। लेकिन सवाल यह कि बिना सरकारी पद या पब्लिक ऑफिस के इतनी कमाई? पीके कहते हैं, “मैं नेता नहीं, सलाहकार हूं। मेरी कमाई मेहनत की है, घोटाले की नहीं।” एक उदाहरण: दो घंटे की सलाह के लिए 11 करोड़ फीस ली, जो एक प्रोडक्ट लॉन्च कंसल्टेंसी से आई। विपक्ष पूछता है—क्या यह राजनीति का ‘कॉमर्शियलाइजेशन’ है, जहां विचारधारा से ज्यादा कॉन्ट्रैक्ट मायने रखते हैं?

241 करोड़ का ब्रेकडाउन: टैक्स, दान और चैलेंज

सितंबर 2025 में पटना प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीके ने खुलासा किया: तीन साल में 241 करोड़ की आय, जिसमें 30.95 करोड़ जीएसटी (18%) और 20 करोड़ इनकम टैक्स चुकाया। बाकी 98.5 करोड़ चेक से जन सुराज पार्टी को दान दिया। “हर रुपया अकाउंटेड है,” उन्होंने कहा। बीजेपी लीडर के फंडिंग सवाल पर तंज कसते हुए बोले, “अगर मुझमें दम नहीं होता, तो आज जेल में होता। ED-CBI आकर जांच लें, मैं तैयार हूं।” एक कंपनी से 11 करोड़ की फीस का जिक्र कर चैलेंज दिया कि जांच हो तो सच्चाई सामने आएगी। लेकिन सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी—कुछ कहते हैं ‘ट्रांसपेरेंट बिजनेस’, तो कुछ ‘टैक्स चोरी का शक’।

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ED-CBI का ‘चुप्पी का रहस्य’: विपक्ष का तीर

विपक्ष का सबसे बड़ा सवाल: जब विपक्षी नेताओं पर ED-CBI की कार्रवाई होती है, तो पीके पर क्यों नहीं? आरजेडी और महागठबंधन कहते हैं, “केंद्रीय एजेंसियां सिलेक्टिव हैं।” पीके का जवाब सीधा: “मैं चोरों जैसा नहीं। सब कुछ पारदर्शी है।” बिहार डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर हत्या के पुराने केस में CBI जांच का जिक्र कर तुलना की। जन सुराज के फंडिंग पर BJP का हमला था, लेकिन पीके ने काउंटर में NDA-JDU लीडर्स पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। यह ‘चुप्पी’ राजनीति का नया टूल लगती है—जब जांच न हो, तो शक पनपता है।

नई इंडस्ट्री या छिपी कहानी?

राजनीति अब ‘स्ट्रैटेजी बिजनेस’ बन गई है। I-PAC जैसी फर्म्स डेटा से वोटर बिहेवियर पढ़ती हैं, जो पार्टियों के लिए गेम-चेंजर है। लेकिन 241 करोड़ बिना पब्लिक पोस्ट के—क्या सिर्फ सलाह की कीमत? या कॉर्पोरेट-राजनीति का गठजोड़? पीके कहते हैं, “मेरे पास छिपाने को कुछ नहीं।” बिहार चुनाव से पहले यह विवाद जन सुराज को बूस्ट दे सकता है, या सवालों का बोझ। X पर #PrashantKishorExposed ट्रेंड कर रहा, जहां यूजर्स टैक्स और फीस पर बहस कर रहे।

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