पाकिस्तान का आतंक प्रेम एक बार फिर सामने आया है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के करीबी मंत्री तलाल चौधरी ने 26/11 हमले के मास्टरमाइंड हाफ़िज़ सईद के संगठन के दफ्तर जाकर देश की सियासत और आतंकवाद के रिश्ते को बेनकाब कर दिया है। जानिए पूरा मामला और इसके अंतरराष्ट्रीय असर।
पाकिस्तान की सियासत और आतंक का गहरा रिश्ता
दुनिया के सामने पाकिस्तान का असली चेहरा एक बार फिर बेनकाब हो गया है। वो पाकिस्तान जो हमेशा खुद को आतंक का “शिकार” बताता है, आज उसी देश के मंत्री खुलेआम आतंक के संरक्षक बनते नजर आ रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के करीबी मंत्री तलाल चौधरी ने फैसलाबाद (Faisalabad) में जमात-उद-दावा (Jamaat-ud-Dawa) की राजनीतिक शाखा पाकिस्तान मरकज़ी मुस्लिम लीग (PMML) के दफ्तर का दौरा किया। यह वही संगठन है, जिसे हाफ़िज़ सईद चलाता था — 26/11 मुंबई हमले का मास्टरमाइंड।
इस मुलाकात ने न सिर्फ पाकिस्तान की राजनीति पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह साफ दिखाता है कि वहां आतंक और सत्ता के बीच की दूरी अब लगभग खत्म हो चुकी है।
हाफ़िज़ सईद का नेटवर्क और पाकिस्तान की राजनीति
हाफ़िज़ सईद वही नाम है जिसने 2008 के मुंबई हमलों में 166 निर्दोषों की जान ली थी। वो संगठन — लश्कर-ए-तैयबा और उसका मुखौटा जमात-उद-दावा (JuD) — जिसे दुनिया के कई देशों ने आतंकी संगठन घोषित कर रखा है। लेकिन पाकिस्तान में, उसी संगठन के दफ्तरों में अब सरकारी मंत्री बैठकर बैठकें कर रहे हैं, तस्वीरें खिंचवा रहे हैं, और राजनीतिक समर्थन की तलाश कर रहे हैं।
ये पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने आतंकियों से करीबी दिखाई हो। इससे पहले भी कई बार पाकिस्तानी नेता, सैन्य अधिकारी, और धार्मिक संगठन एक ही मंच पर दिखे हैं। ऐसे में सवाल उठता है — क्या पाकिस्तान में राजनीति अब पूरी तरह आतंक के सहारे चल रही है?
क्यों डरावनी है ये तस्वीर?
इस घटना का असर केवल पाकिस्तान तक सीमित नहीं रहेगा। क्योंकि यह दिखाता है कि देश की राजनीतिक व्यवस्था आतंकवादियों के प्रभाव में है। जहां एक तरफ भारत और पूरी दुनिया आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है, वहीं पाकिस्तान के नेता उन्हीं आतंकियों से “राजनीतिक रिश्ते” निभा रहे हैं।
यह घटना संयुक्त राष्ट्र (UN) और Financial Action Task Force (FATF) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए भी चिंता का विषय है। क्योंकि पाकिस्तान पहले से ही FATF की निगरानी सूची में रह चुका है और अब ऐसे कृत्य फिर उसे “आतंकी पनाहगाह” के रूप में चिन्हित कर सकते हैं।
भारत की प्रतिक्रिया और वैश्विक संदेश
भारत ने हमेशा स्पष्ट कहा है -“आतंक और बातचीत साथ नहीं चल सकते।” भारत ने कई बार पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की चेतावनी दी है। लेकिन इस तरह के घटनाक्रम साफ दिखाते हैं कि पाकिस्तान ने न केवल अपने वादे तोड़े हैं, बल्कि उसने आतंकवाद को ही राजनीति का हिस्सा बना लिया है।
भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम पाकिस्तान के भीतर “कट्टरपंथी वोट बैंक” को साधने की कोशिश है। मगर इससे पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि और आर्थिक स्थिरता पर और भी नकारात्मक असर पड़ेगा
क्या सुधरेगा पाकिस्तान?
पाकिस्तान की राजनीति और आतंकवाद के बीच की यह डोर अब लगभग अटूट लगती है। जब एक मंत्री खुलेआम जेल में बंद आतंकी के संगठन के दफ्तर जा सकता है, तो सोचिए — आम जनता को वहां क्या संदेश मिलता है? क्या पाकिस्तान कभी सुधरेगा? क्या वो कभी दुनिया के साथ ईमानदारी से खड़ा हो पाएगा? या फिर हमेशा आतंक के सहारे अपनी राजनीति को जिंदा रखेगा? इन सवालों का जवाब शायद पाकिस्तान खुद भी नहीं जानता।
आज पाकिस्तान के इस कदम ने साबित कर दिया है – वह देश नहीं सुधरेगा, जो अपने दुश्मनों को ही अपना राजनीतिक साथी बना लेता है। जहां प्रधानमंत्री का मंत्री आतंकियों के दफ्तर में जाता है, वहां शांति की उम्मीद करना खुद से झूठ बोलने जैसा है। पाकिस्तान का DNA नहीं बदलेगा, क्योंकि वहां आतंक ही अब सियासत है।

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