भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी.आर. गवई ने एक बार फिर अनुसूचित जातियों (SC) के आरक्षण में क्रीमी लेयर के सिद्धांत को लागू करने का समर्थन किया है। रविवार को आंध्र प्रदेश के अमरावती में “75 वर्षों में भारत और जीवंत भारतीय संविधान” कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आरक्षण का लाभ उन लोगों को मिलना चाहिए जो वास्तव में वंचित हैं। जस्टिस गवई ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “एक आईएएस अधिकारी के बच्चों की तुलना एक गरीब खेतिहर मजदूर के बच्चों से नहीं की जा सकती।” यह बयान आरक्षण नीति पर देशव्यापी बहस को नई गति दे सकता है।
क्रीमी लेयर पर अडिग रुख, इंद्रा साहनी केस का जिक्र
जस्टिस गवई ने 1992 के ऐतिहासिक इंद्रा साहनी मामले का हवाला देते हुए कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए जो क्रीमी लेयर का सिद्धांत निर्धारित किया गया था, वही SC और ST पर भी लागू होना चाहिए। 2024 में उन्होंने राज्यों से अपील की थी कि SC/ST समुदायों में क्रीमी लेयर की पहचान के लिए नीति बनाएं और उन्हें आरक्षण का लाभ न दें। इस विचार पर व्यापक आलोचना हुई थी, लेकिन CJI ने कहा, “मैं आज भी अपनी राय पर कायम हूं। जजों को आमतौर पर अपने फैसलों को सही ठहराने की जरूरत नहीं पड़ती।” उनके कार्यकाल का अंतिम सप्ताह चल रहा है, और यह उनका आखिरी बड़ा सार्वजनिक बयान था। अमरावती में आयोजित इस कार्यक्रम को उन्होंने अपनी CJI यात्रा का प्रतीक बताया—उनका पहला कार्यक्रम महाराष्ट्र के अमरावती में था, और अंतिम आंध्र प्रदेश के अमरावती में।
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संविधान की ताकत: समानता और सशक्तीकरण की कहानी
कार्यक्रम में जस्टिस गवई ने भारतीय संविधान की जीवंतता पर जोर दिया। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर की दृष्टि का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान स्थिर दस्तावेज नहीं, बल्कि विकसित होने वाला जीवंत दस्तावेज है, जैसा कि अनुच्छेद 368 में संशोधन का प्रावधान है। संविधान सभा की बहसों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि संविधान न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के चार स्तंभों पर टिका है। पिछले कुछ वर्षों में देश में समानता और महिला सशक्तीकरण में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, और महिलाओं के प्रति भेदभाव अब कड़ी निंदा का विषय बन गया है।
CJI ने SC समुदाय से दो राष्ट्रपतियों—के.आर. नारायणन और राम नाथ कोविंद—का उदाहरण दिया, जबकि वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आदिवासी महिला हैं। यह सब संविधान की बदौलत संभव हुआ। अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा, “मैं अमरावती की एक अर्ध-झुग्गी क्षेत्र की म्युनिसिपल स्कूल से निकला हूं, फिर भी भारत के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंच सका। यह संविधान की ताकत है।” यह उदाहरण आरक्षण और संविधान की भूमिका को रेखांकित करता है।
आरक्षण बहस में नया मोड़: क्या बदलेगी नीति?
जस्टिस गवई के इस बयान ने SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की बहस को ताजगी दे दी है। समर्थक मानते हैं कि इससे वास्तविक जरूरतमंदों तक लाभ पहुंचेगा, जबकि आलोचक इसे आरक्षण के मूल उद्देश्य के खिलाफ बताते हैं। सुप्रीम कोर्ट में लंबित कई याचिकाएं इस मुद्दे पर हैं, और CJI का रुख इन पर प्रभाव डाल सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यों को अब स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने होंगे।
यह बयान न केवल न्यायिक दृष्टिकोण को दर्शाता है, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में संविधान की प्रासंगिकता को भी रेखांकित करता है। जैसे-जैसे जस्टिस गवई का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, उनके विचार लंबे समय तक चर्चा का विषय बने रहेंगे। देशवासियों से अपील है कि संविधान के मूल्यों को मजबूत रखें और समावेशी विकास सुनिश्चित करें।

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