अरावली पहाड़ियों की, जो न केवल हमारे इतिहास का हिस्सा हैं बल्कि हमारे पर्यावरण और जीवन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अरावली हिमालय से भी पुरानी हैं करीब 200 करोड़ साल पुरानी।
अरावली और इतिहास
इतिहास में अरावली ने भारतीय राजपूतों को मुग़ल आक्रांताओं से सुरक्षा दी। मुगल साम्राज्य की विस्तारवादी सोच में अरावली की पहाड़ियां सबसे बड़ा रोड़ा बनकर खड़ी थीं। घने जंगल, ऊँची पहाड़ियां और घाटियां यही राजपूताना की सुरक्षा का सबसे बड़ा हथियार थीं। 17वीं शताब्दी में मेवाड़, मारवाड़ और आमेर इन्हीं पहाड़ियों के सहारे खड़े थे।लोक कथाओं में कहा जाता है कि औरंगजेब ने कहा था, “काश यह अरावली ना होती, तो राजपूतों को काबू करना आसान होता।” यह बात दर्शाती है कि अरावली केवल पत्थर नहीं थे, बल्कि सुरक्षा, शक्ति और इतिहास की दीवार थे।
आज की चुनौती: अरावली का खनन
लेकिन आज वही अरावली, जिनसे मुगलों के मंसूबे नहीं टूट सके, हम खुद नष्ट कर रहे हैं। खनन माफिया, अदालत के आदेशों के बावजूद, अरावली में दिन-रात सक्रिय हैं। जंगल कट रहे हैं, नदियों के स्रोत सूख रहे हैं और दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान और हरियाणा में अरावली के नाम पर सिर्फ कागजों में ही पहाड़ बचे हैं। अरावली का विनाश केवल भूगोल तक सीमित नहीं है। इसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ता है:
- प्रदूषण बढ़ेगा
- भूजल स्तर गिर जाएगा
- भीषण गर्मी का प्रकोप बढ़ेगा
- रेगिस्तान का फैलाव तेज होगा
दिल्ली-एनसीआर में जहरीली हवा के पीछे भी अरावली के खनन को एक बड़ी वजह माना जाता है।
इतिहास और आज की सीख
एक समय अरावली बाहरी दुश्मनों के लिए खतरा थी। आज वही अरावली हमारे लिए जीवनदायिनी है। अगर अरावली बची रहेगी, तो हम बचेंगे। नहीं तो इतिहास यह लिखेगा कि जो अरावली तलवारों से नहीं टूटी, वह लालच और लापरवाही से टूट गई।

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