बिहार की राजनीति एक बार फिर से गर्म हो गई है। लेकिन इस बार बहस जाति, धर्म या आरक्षण पर नहीं, बल्कि रोजगार और पलायन जैसे बुनियादी मुद्दों पर हो रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बेगूसराय से शुरू की गई ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा के जरिए इस मुद्दे को केंद्र में ला दिया है।
राहुल गांधी का दावा है कि बिहार का नौजवान सिस्टम की अनदेखी से तंग आ चुका है, और अब बदलाव चाहता है — एक ऐसा बदलाव जिसमें उसे अपने ही राज्य में सम्मानजनक रोजगार मिले।
पलायन की सच्चाई: घर छोड़ने को मजबूर बिहार का युवा
बिहार से अब तक लगभग 2.9 करोड़ लोग बेहतर रोज़गार की तलाश में दिल्ली, मुंबई, पंजाब और गुजरात जैसे राज्यों में पलायन कर चुके हैं। ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं हैं, बल्कि उस दर्द की तस्वीर हैं जिसमें किसी को मज़दूरी करनी पड़ती है, किसी को चौकीदारी और किसी को रिक्शा चलाना।
राहुल गांधी ने पदयात्रा के दौरान कहा:
“बिहार का नौजवान मेहनती है, लेकिन उसे सिस्टम ने मौका नहीं दिया। न यहां उद्योग है, न नौकरी, इसलिए लोग घर छोड़ने को मजबूर हैं।
सरकारी दावे और सच्चाई का टकराव
बिहार सरकार का दावा है कि 2020 से अब तक 7.24 लाख सरकारी नौकरियां दी गई हैं। यह आंकड़ा अपनी जगह ठीक है, लेकिन अगर इसी सरकार के आंकड़ों को देखें, तो आज भी 5 लाख पद खाली हैं।
इससे बड़ा सवाल यह है कि क्या इन नौकरियों का वितरण पारदर्शी ढंग से हुआ? क्या गरीब तबकों और दूर-दराज के छात्रों को भी इसका फायदा मिला?
राजनीतिक दलों की जुबानी जंग
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, सभी पार्टियों की जुबान पर “रोज़गार” शब्द चढ़ गया है।
- राजद के तेजस्वी यादव पहले ही वादा कर चुके हैं कि सरकार बनने पर पहले कैबिनेट में 10 लाख नौकरियों की घोषणा करेंगे।
- भाजपा “डबल इंजन सरकार” के तहत उद्योग, निवेश और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने का दावा कर रही है।
- और अब कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में इस बहस को और धार दे रही है।
लेकिन जनता का सवाल साफ है —
“वादे हर बार होते हैं, इस बार कौन पूरा करेगा?”
क्या युवा अब जाति से ऊपर सोचने लगे हैं?
बिहार की राजनीति अब तक जातिगत समीकरणों पर आधारित रही है। यादव, कुर्मी, ब्राह्मण, दलित — हर वर्ग की अपनी-अपनी राजनीतिक पसंद रही है। लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं।
आज का युवा इंटरनेट, सोशल मीडिया और मोबाइल के जरिए ज्यादा जागरूक हो चुका है। अब वो नेता के नाम से नहीं, उसके काम से वोट देना चाहता है।
पटना यूनिवर्सिटी के एक छात्र का कहना है:
“हम जाति में नहीं, नौकरी में यकीन रखते हैं। अब बात सिर्फ इस पर होगी कि कौन हमारे लिए कुछ कर सकता है।”
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