हाल ही में सीबीएसई (CBSE) के अध्यक्ष राहुल सिंह ने मातृभाषा को पढ़ाई के माध्यम के रूप में अपनाने को लेकर एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मेट्रोपोलिटन शहरों के स्कूलों में मातृभाषा को प्राथमिक भाषा बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि यहाँ के छात्र विभिन्न राज्यों और भाषाई पृष्ठभूमियों से आते हैं। ऐसे में किसी एक मातृभाषा को लागू करना व्यावहारिक नहीं लगता।
मातृभाषा शिक्षा की भूमिका और चुनौती
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने कक्षा 5 तक मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा है। मातृभाषा में पढ़ाई से बच्चों का शैक्षिक विकास बेहतर होता है क्योंकि वे अपनी सहज भाषा में सीखते हैं, जिससे उनकी समझ और ज्ञान अधिक गहरा होता है। हालांकि, मेट्रोपोलिटन क्षेत्रों में कई भाषाओं के विद्यार्थी होने के कारण एक ही मातृभाषा को लागू करना व्यावहारिक नहीं है। राहुल सिंह ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस नीति को लचीले (flexible) और चरणबद्ध (phased) तरीके से लागू किया जाएगा ताकि छात्रों को कोई असुविधा न हो।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और मातृभाषा शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधार प्रस्तावित किए हैं, जिनमें मातृभाषा या स्थानीय भाषा में प्राथमिक शिक्षा देना एक प्रमुख बदलाव है। इसका उद्देश्य बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को सरल बनाना और उन्हें उनकी भाषा में सशक्त करना है। इसके तहत कक्षा 5 तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाई का मौका देना जरूरी माना गया है, क्योंकि इस उम्र तक बच्चे अपनी मातृभाषा में बेहतर समझ विकसित कर पाते हैं। सीबीएसई अध्यक्ष ने स्पष्ट किया है कि इसका मतलब यह नहीं कि सभी स्कूलों में तुरंत ही मातृभाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाया जाएगा, बल्कि इसे परिस्थिति और उपलब्ध संसाधनों के अनुसार धीरे-धीरे लागू किया जाएगा। इसका मकसद बच्चों पर अतिरिक्त बोझ डालना नहीं बल्कि उन्हें सहज और प्रभावी शिक्षा प्रदान करना है।
मेट्रोपोलिटन स्कूलों की विशेष स्थिति
मेट्रोपोलिटन शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, और कोलकाता के स्कूलों में कई राज्यों से छात्र पढ़ते हैं। इस वजह से विभिन्न भाषाओं के बीच संतुलन बनाना और किसी एक भाषा को प्राथमिकता देना मुश्किल होता है। इसलिए सीबीएसई ने इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए शिक्षा नीति को अनुकूलित करने की योजना बनाई है।
मातृभाषा शिक्षा के फायदे
- बेहतर समझ: बच्चे अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करते हुए विषयों को आसानी से समझ पाते हैं।
- बौद्धिक विकास: मातृभाषा में शिक्षा से सोचने और तार्किक क्षमता का विकास होता है।
- सांस्कृतिक पहचान: अपनी भाषा में शिक्षा से बच्चों में अपनी संस्कृति और विरासत के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
- शिक्षा में रुचि: मातृभाषा में पढ़ाई से छात्रों की सीखने में रुचि बढ़ती है, जिससे स्कूल छोड़ने की दर कम होती है।
सीबीएसई अध्यक्ष राहुल सिंह का यह बयान दर्शाता है कि मातृभाषा में शिक्षा को लेकर स्कूलों की वास्तविक परिस्थितियों को समझते हुए ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू किया जाएगा। मेट्रोपोलिटन क्षेत्रों की विविधता को ध्यान में रखते हुए एक लचीला और चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाया जाएगा । जिससे बच्चों के सीखने की प्रक्रिया में सुधार हो और वे किसी भी तरह के दबाव या बाधा से मुक्त रहें।यह नीति न केवल छात्रों के लिए शिक्षा को आसान बनाएगी बल्कि उनकी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करेगी।
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