कांग्रेस नेताओं के विदेश दौरे: राष्ट्रीय हित या पार्टी विरोध?

हाल ही में वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, शशि थरूर और मनीष तिवारी ने विभिन्न देशों में भारत का पक्ष रखने के लिए विदेश दौरे किए। ये नेता भारत सरकार की ओर से गठित प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा थे, जिनका उद्देश्य ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समुदाय को जागरूक करना था। इन नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से लेकर अमेरिकी सांसदों और अन्य देशों के राजनेताओं तक भारत की बात पहुंचाई। सलमान खुर्शीद ने अपनी मलेशिया यात्रा को विशेष रूप से सफल बताया, जहां उन्होंने इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के सदस्य देश को भारत के पक्ष में समर्थन पत्र प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की। शशि थरूर ने भी एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और कहा कि राष्ट्रीय हित में काम करना पार्टी लाइन से ऊपर है। मनीष तिवारी ने खाड़ी और अफ्रीकी देशों में पाकिस्तान के आतंकी मंसूबों को उजागर करने में अपने दल की भूमिका की सराहना की।

कांग्रेस की आलोचना और नेताओं का जवाब

इन नेताओं की सफलता के बावजूद, कांग्रेस पार्टी ने सरकार की इस रणनीति की आलोचना की है। पार्टी का कहना है कि इन विदेश दौरों से कोई ठोस परिणाम नहीं मिला और प्रतिनिधिमंडल बड़े नेताओं से मुलाकात नहीं कर पाए। AICC प्रवक्ता अजॉय कुमार ने कहा कि सरकार ने प्रतिनिधिमंडलों को कोई स्पष्ट स्क्रिप्ट नहीं दी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रतिनिधिमंडलों ने चीन की भूमिका और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावों की आलोचना नहीं की। हालांकि, सलमान खुर्शीद ने स्पष्ट किया कि वह पूरे दौरे के दौरान पार्टी नेतृत्व के संपर्क में थे और उनकी मलेशिया यात्रा के बाद पाकिस्तान को निराशा में प्रेस विज्ञप्ति जारी करनी पड़ी। शशि थरूर ने भी कहा कि राष्ट्रीय हित में काम करना पार्टी विरोधी नहीं है और इसे संकीर्ण दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए। मनीष तिवारी ने भी अपने दौरे की सफलता पर जोर दिया और कहा कि उन्होंने पाकिस्तान के झूठ को प्रभावी ढंग से उजागर किया।

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पार्टी और नेताओं के बीच मतभेद

कांग्रेस नेताओं के इन बयानों ने पार्टी के भीतर एक वैचारिक मतभेद को उजागर किया है। जहां खुर्शीद, थरूर और तिवारी जैसे नेता राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देने की बात कर रहे हैं, वहीं पार्टी नेतृत्व सरकार की रणनीति पर सवाल उठा रहा है। यह स्थिति तब और जटिल हो जाती है, जब पार्टी के प्रवक्ता इन दौरों को अप्रभावी बताते हैं, जबकि इनके नेताओं ने वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष मजबूती से रखा। यह विरोधाभास कांग्रेस की रणनीति और नेताओं की व्यक्तिगत पहल के बीच टकराव को दर्शाता है।

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