उत्तर प्रदेश में नमाज़ पर विवाद: प्रशासन बनाम धार्मिक स्वतंत्रता

उत्तर प्रदेश में नमाज़ को लेकर एक बार फिर से विवाद गहरा गया है। खासकर संभल और मेरठ में, जहां प्रशासन ने ईद पर सड़क और छत पर नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी लगा दी है। इस फैसले को लेकर मुस्लिम नेताओं ने सवाल खड़े किए हैं कि जब होली और दिवाली छतों पर मनाई जा सकती है, तो फिर नमाज़ पर यह रोक क्यों? वहीं, कानपुर के डीएम राजेंद्र पेंसिया ने इस मामले पर बयान दिया है कि जुम्मे की नमाज़ परंपरा के तहत ही होगी। 

प्रशासन का फैसला और इसकी वजह

यह फैसला प्रशासन की तरफ से सुरक्षा और व्यवस्थाओं को देखते हुए लिया गया है। अधिकारियों का कहना है कि त्योहारों के दौरान भीड़ नियंत्रण और शांति बनाए रखना प्राथमिकता होती है। सड़क पर नमाज़ पढ़ने से यातायात प्रभावित होता है, और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन को ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं।

मुस्लिम नेताओं का विरोध

इस फैसले का विरोध भी तेजी से हो रहा है। कई मुस्लिम नेताओं ने सवाल उठाए हैं कि जब दूसरे त्योहारों पर छतों और सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल किया जा सकता है, तो ईद की नमाज़ पर यह पाबंदी क्यों? उनका कहना है कि प्रशासन को धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए और सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखना चाहिए।

एक मुस्लिम नेता का कहना है, “अगर दीपावली पर आतिशबाजी और होली पर रंग खेलने की छूट दी जाती है, तो नमाज़ अदा करने की अनुमति क्यों नहीं?”

डीएम राजेंद्र पेंसिया का बयान

वहीं, कानपुर के डीएम राजेंद्र पेंसिया ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि जुम्मे की नमाज़ परंपरा के तहत ही होगी, यानी इसमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा। प्रशासन का कहना है कि मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज़ पढ़ने की अनुमति है, लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर भीड़ जमा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

स्थानीय नागरिकों की राय

इस फैसले पर स्थानीय नागरिकों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं। कुछ लोग प्रशासन के फैसले को सही ठहरा रहे हैं, तो कुछ इसे धार्मिक भेदभाव मान रहे हैं।

एक स्थानीय निवासी ने कहा, “हम अपने धार्मिक अधिकारों का सम्मान चाहते हैं। अगर दूसरे त्योहार खुले में मनाए जा सकते हैं, तो नमाज़ पर रोक क्यों?”

वहीं, कुछ नागरिकों का कहना है कि प्रशासन को सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए समान नियम बनाने चाहिए ताकि किसी को भी असमानता महसूस न हो।

क्या यह मामला राजनीति से जुड़ा है?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक भी बन सकता है। चुनावी माहौल में ऐसे मुद्दे राजनीतिक दलों के लिए संवेदनशील विषय बन जाते हैं। कुछ राजनीतिक दल इसे धार्मिक स्वतंत्रता से जोड़कर सरकार की आलोचना कर सकते हैं, जबकि कुछ इसे कानून व्यवस्था का विषय बताकर प्रशासन के पक्ष में खड़े हो सकते हैं।

क्या यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है?

संविधान के अनुसार, हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने का अधिकार है। लेकिन, क्या सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक आयोजन करना भी इस अधिकार में शामिल है? यह एक बहस का विषय बन सकता है। प्रशासन का कहना है कि सार्वजनिक स्थलों पर किसी भी प्रकार की भीड़ नियंत्रित करना जरूरी होता है, वहीं धार्मिक नेता इसे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर चोट मान रहे हैं।

आगे क्या होगा?

अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन अपने फैसले पर कायम रहेगा या फिर इसमें कोई ढील दी जाएगी? क्या धार्मिक संगठनों और प्रशासन के बीच कोई समझौता होगा? और क्या कानपुर के कमिश्नर इस विवाद पर कोई स्पष्ट बयान देंगे?

निष्कर्ष

संभल और मेरठ में प्रशासन द्वारा ईद पर सड़क और छत पर नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी लगाना एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। मुस्लिम नेताओं और स्थानीय लोगों में इस फैसले को लेकर गहरी असहमति है। प्रशासन का तर्क है कि यह कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी है, जबकि धार्मिक नेताओं का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।

अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में प्रशासन और धार्मिक संगठनों के बीच इस विषय पर कोई सहमति बनती है या नहीं। फिलहाल, इस मुद्दे को लेकर चर्चा और विवाद दोनों जारी हैं।

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