“टैरिफ टैंट्रम्स”: डोनाल्ड ट्रंप का नया फैसला और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उसका असर

दुनियाभर के बाजारों में हाल ही में जो हलचल देखी गई, उसका एक बड़ा कारण बना अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नया टैरिफ फैसला। ट्रंप ने एक नई नीति के तहत 90 दिनों तक सभी देशों पर टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने से रोक लगा दी है, लेकिन चीन को इस छूट से बाहर रखा गया है। वैश्विक अर्थशास्त्रियों और नेताओं ने इस निर्णय पर चिंता जताई है और सवाल उठाए हैं – क्या यह फैसला व्यापार में स्थिरता लाएगा या और अस्थिरता फैलाएगा? आइए इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।

क्या है “टैरिफ टैंट्रम्स”?

“टैरिफ टैंट्रम्स” शब्द उस आर्थिक रणनीति को दर्शाता है जिसमें किसी देश द्वारा आयात पर अचानक भारी शुल्क लगा दिया जाता है ताकि घरेलू उत्पादों को बढ़ावा मिल सके। डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में उन्होंने इसी नीति को अपनाया था। अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध उसी नीति का परिणाम था।

अब एक बार फिर ट्रंप ने टैरिफ को अस्थायी रूप से रोकने का ऐलान किया है – लेकिन चीन के लिए नहीं। यह संकेत है कि चीन के साथ अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में अब भी तल्खी बरकरार है।

फैसले का कारण: वैश्विक बाजार में गिरावट

यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वैश्विक बाजार पहले से ही दबाव में हैं – अमेरिका की बैंकिंग प्रणाली में उथल-पुथल, यूरोप की धीमी वृद्धि दर, और एशिया में उत्पादन में गिरावट। इन हालातों में ट्रंप की टैरिफ नीति को लेकर निवेशकों में और भी घबराहट फैल गई थी। इसके चलते बाजारों में गिरावट आई और ट्रंप प्रशासन को कुछ राहत देने के लिए यह 90 दिन का “ब्रेक” देना पड़ा।

भारत पर क्या असर पड़ेगा?

भारत जैसे विकासशील देश इस प्रकार की वैश्विक नीतियों से सीधे प्रभावित होते हैं। अमेरिका और चीन, दोनों ही भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार हैं। यदि अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ता है, तो भारतीय निर्यातकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

विशेष रूप से, भारत के टेक्सटाइल, फार्मास्युटिकल, ऑटो पार्ट्स और आईटी सेक्टर पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा, वैश्विक बाजार में अस्थिरता से रुपये की कीमत, कच्चे तेल की कीमत और निवेश प्रवाह भी प्रभावित हो सकते हैं।

राजनीतिक दृष्टिकोण से विश्लेषण

ट्रंप का यह कदम केवल आर्थिक नहीं, बल्कि पूरी तरह से एक रणनीतिक राजनीतिक फैसला भी है। 2024 में चुनाव हारने के बाद ट्रंप अब एक बार फिर 2025 की राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं। अपने समर्थकों को लुभाने के लिए वह “अमेरिका फर्स्ट” नीति को फिर से ज़ोर-शोर से पेश कर रहे हैं।

चीन पर टैरिफ बरकरार रखने से ट्रंप अमेरिका में “कड़ा नेतृत्व” दिखाने का संदेश दे रहे हैं, जबकि बाकी दुनिया के देशों के लिए छूट देकर वह खुद को संतुलित नेता के रूप में भी पेश कर रहे हैं।

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वैश्विक व्यापार के लिए खतरे की घंटी

टैरिफ जैसे फैसले केवल दो देशों को ही नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करते हैं। अगर 90 दिनों के बाद फिर से टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो कंपनियों की लागत बढ़ेगी, उपभोक्ताओं को महंगे उत्पाद मिलेंगे और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता बढ़ेगी।

WTO जैसी संस्थाओं को ऐसे समय में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभानी होगी ताकि देशों के बीच संतुलन बना रहे और व्यापार युद्ध की स्थिति से बचा जा सके।

आगे का रास्ता: भारत की रणनीति क्या होनी चाहिए?

भारत को इस परिस्थिति में दो स्तर पर काम करने की ज़रूरत है:

  1. घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना – ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों को और गति दी जाए, ताकि वैश्विक बाजार की निर्भरता कम हो।
  2. नई साझेदारियां बनाना – भारत को अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर ध्यान देना चाहिए, जिससे अमेरिकी और चीनी बाजारों पर निर्भरता कम हो सके।

साथ ही, भारत को अपनी मुद्रा नीति, निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं और निवेश आकर्षण रणनीतियों को तेज करना चाहिए।

डोनाल्ड ट्रंप की “टैरिफ टैंट्रम्स” नीति एक बार फिर वैश्विक बाजार में हलचल मचा रही है। यह फैसला अल्पकालिक राहत तो दे सकता है, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता के लिए गंभीर खतरे भी पैदा करता है। भारत को इस दौर में सतर्क रहते हुए अपने हितों की रक्षा करनी होगी और वैश्विक मंच पर एक चतुर व संतुलित रणनीति अपनानी होगी।

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