बांग्लादेश की राजधानी ढाका से आई एक चौंकाने वाली खबर ने भारत समेत पूरे हिंदू समाज को झकझोर कर रख दिया है। ढाका के खिलखेत इलाके में स्थित एक दुर्गा मंदिर को तोड़ दिया गया, और इस घटना को लेकर भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है। यह केवल एक मंदिर ढहाने की घटना नहीं, बल्कि इससे जुड़े सांप्रदायिक, सामाजिक और कूटनीतिक सवाल भी खड़े हो गए हैं।
मंदिर गिराने का कारण प्रशासनिक तर्क या कट्टरपंथ?
बांग्लादेशी अधिकारियों ने मंदिर को गिराने की कार्रवाई को अवैध कब्जा हटाना बताया है। उनके मुताबिक यह एक अस्थायी ढांचा था, जिसे हटाना जरूरी था। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब उस स्थल पर मूर्तियां स्थापित थीं, पूजा-पाठ होता था, और स्थानीय हिंदू समुदाय वहां आस्था से जाता था, तो क्या उसे इतनी आसानी से तोड़ा जाना उचित है?भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जैसवाल ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “हमें जानकारी मिली है कि कुछ कट्टरपंथी इस दुर्गा मंदिर को गिराने की मांग कर रहे थे, लेकिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने मंदिर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बजाय उसे अवैध ठहराकर ढहा दिया।”
भारत की आपत्ति और कूटनीतिक संदेश
भारत सरकार ने साफ तौर पर बांग्लादेश से आग्रह किया है कि वह अपने देश में रह रहे हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। यह पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया गया हो। इससे पहले भी पूजा स्थलों पर हमले, दुर्गा पूजा पंडालों में तोड़फोड़, और हिंदू व्यापारियों की दुकानों को जलाने जैसी घटनाएं सामने आती रही हैं।इन घटनाओं से न केवल अल्पसंख्यकों में भय फैलता है, बल्कि बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी सवाल उठते हैं।
दोहरे मापदंड का सवाल
इस मामले में एक अहम सवाल यह भी है कि जब भारत में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव और आलोचना होती है, तो क्या बांग्लादेश को भी उतनी ही संवेदनशीलता और ईमानदारी से अपने देश के हिंदुओं की रक्षा नहीं करनी चाहिए? यदि बांग्लादेश भारत में किसी मुस्लिम मुद्दे पर आवाज़ उठाता है, तो उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके देश के हिंदू नागरिक भय और अन्याय का शिकार न हों।
क्या बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं?
बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या करीब 8-10% है, लेकिन उनकी स्थिति लगातार दबाव, भेदभाव और डर के साए में रहती है। मंदिर तोड़ना, दुर्गा पूजा के दौरान हिंसा, जमीनों पर अवैध कब्जे, और धार्मिक आधार पर हमले वहाँ के हिंदू समुदाय को कमजोर करते जा रहे हैं।
निष्कर्ष: अब क्या?
ढाका में दुर्गा मंदिर गिराने की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बांग्लादेश को अब अपने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। केवल “अवैध कब्जा” का हवाला देकर धार्मिक स्थलों को तोड़ना न तो लोकतांत्रिक है और न ही मानवाधिकारों के अनुरूप।भारत सरकार द्वारा उठाई गई आपत्ति सही है, और इसे केवल कूटनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों के व्यापक मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए।
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