चीन और अमेरिका के बीच चल रहा ट्रेड वॉर अब गहराता जा रहा है और इसका असर सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं रह गया है। इस व्यापारिक तनाव का सबसे बड़ा हथियार बना है “रेयर अर्थ मिनरल्स”, जो खास चुम्बकों (मैग्नेट) के रूप में इलेक्ट्रिक और ऑटो इंडस्ट्री की नींव हैं। इसका ताजा उदाहरण अमेरिका की फोर्ड मोटर कंपनी है, जिसे पिछले तीन हफ्तों में अपनी कई फैक्ट्रियों को बंद करना पड़ा।
फोर्ड के सीईओ जिम फार्ले ने बताया कि उन्हें चीन से हाई पावर वाले चुम्बकों की आपूर्ति नहीं मिल रही, जिसकी वजह से फैक्ट्रियों में उत्पादन रुक गया है। ये मैग्नेट गाड़ियों की सीट, दरवाजे, विंडशील्ड वाइपर और ऑडियो सिस्टम जैसे जरूरी हिस्सों में लगते हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अमेरिका को अब अपनी खुद की सप्लाई चेन विकसित करनी होगी, ताकि चीन पर निर्भरता कम की जा सके।
चीन की चाल – रेयर अर्थ पर नियंत्रण
चीन ने 4 अप्रैल 2025 को एक नया नियम लागू किया, जिसके तहत मीडियम और हैवी रेयर अर्थ मैग्नेट के निर्यात पर लाइसेंस की अनिवार्यता कर दी गई है। अब कोई भी कंपनी जब तक चीन के वाणिज्य मंत्रालय से अनुमति नहीं लेती, तब तक वह ये चुम्बक दूसरे देशों को निर्यात नहीं कर सकती। इसके लिए खरीदने वाली कंपनियों को यह गारंटी देनी होती है कि इन चुम्बकों का उपयोग किसी प्रकार के विनाशकारी हथियार या वैश्विक खतरे के लिए नहीं होगा।
इस नियम को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए आयात शुल्क के जवाब में देखा जा रहा है। चीन इस रणनीति के ज़रिए अपने रेयर अर्थ संसाधनों को राजनीतिक और व्यापारिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
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भारत की ऑटो इंडस्ट्री पर मंडराता खतरा
इस पूरे घटनाक्रम का असर अब भारत पर भी दिखने लगा है। भारत की 52 कंपनियां चीन से रेयर अर्थ चुम्बक खरीदती हैं, जिन्हें देश की ऑटोमोबाइल कंपनियों को सप्लाई किया जाता है। भारत की 20 से अधिक कंपनियों ने चीन से लाइसेंस के लिए आवेदन किया है, लेकिन अब तक किसी को मंजूरी नहीं मिली है।
सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के मुताबिक, यदि जुलाई की शुरुआत तक इन कंपनियों को चुम्बकों की आपूर्ति नहीं मिली, तो गाड़ियों का उत्पादन पूरी तरह ठप हो सकता है। इससे ना केवल भारत की ऑटो इंडस्ट्री को आर्थिक नुकसान होगा, बल्कि रोजगार और निवेश पर भी बुरा असर पड़ेगा।
समाधान की राह
इस संकट से उबरने के लिए भारत को अब आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ाना होगा। सरकार को चाहिए कि वह रेयर अर्थ मिनरल्स के स्थानीय स्रोतों की खोज को तेज करे और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश को बढ़ावा दे। इसके अलावा, वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों जैसे ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम और अफ्रीकी देशों से सहयोग बढ़ाना भी एक अहम कदम हो सकता है।
रेयर अर्थ मिनरल्स के इस वैश्विक संघर्ष में भारत को सजग रहकर अपनी रणनीति बनानी होगी, ताकि देश की ऑटो और इलेक्ट्रिक इंडस्ट्री किसी भी अंतरराष्ट्रीय झटके से सुरक्षित रह सके।
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