उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की राह अब साफ हो गई है। नैनीताल हाई कोर्ट ने शुक्रवार को चुनाव पर लगी रोक हटा दी है, जिससे राज्य में लंबे समय से अटके पंचायत चुनाव फिर से पटरी पर लौटते नजर आ रहे हैं।
हाई कोर्ट ने यह फैसला राज्य सरकार द्वारा पंचायत चुनाव में आरक्षण रोस्टर की पूरी जानकारी कोर्ट के समक्ष रखने के बाद दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चुनाव टालने की उनकी मंशा नहीं थी, लेकिन संवैधानिक प्रावधानों का पालन जरूरी है।
क्या था मामला?
राज्य निर्वाचन आयोग ने 21 जून को हरिद्वार को छोड़कर बाकी 12 जिलों में पंचायत चुनाव कराने की अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत दो चरणों में चुनाव कराए जाने थे—25 से 28 जून तक नामांकन प्रक्रिया, 10 और 15 जुलाई को मतदान और 19 जुलाई को मतगणना प्रस्तावित थी।
हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 243 D व 243 T का हवाला देते हुए आरक्षण रोस्टर के अभाव में चुनाव प्रक्रिया को चुनौती दी। कोर्ट ने भी इस पर सहमति जताते हुए अस्थायी तौर पर रोक लगा दी थी।
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कोर्ट का फैसला और आगे की रणनीति
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार की ओर से आरक्षण रोस्टर का विस्तृत ब्यौरा अदालत में पेश किया गया। इसके बाद हाई कोर्ट ने यह कहते हुए चुनाव पर लगी रोक हटाने का निर्णय लिया कि “हमारी मंशा चुनाव रोकने की नहीं है, पर संविधान और कानून का पालन आवश्यक है।”
राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने जानकारी दी कि नया चुनाव कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है और जल्द ही संशोधित अधिसूचना जारी की जाएगी।
क्यों है यह चुनाव महत्वपूर्ण?
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव न सिर्फ स्थानीय विकास योजनाओं के लिए ज़रूरी हैं, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ज़मीनी स्तर तक मज़बूत करने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं। लंबे समय से रुकी हुई इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए यह कोर्ट का फैसला निर्णायक माना जा रहा है।
अब सभी की नजरें निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किए जाने वाले नए कार्यक्रम पर टिकी हैं, जिससे पंचायत प्रतिनिधियों के चयन की प्रक्रिया औपचारिक रूप से दोबारा शुरू हो सकेगी।
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