2024 में स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा तेज़ी से बढ़ा है। स्विस नेशनल बैंक की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, इस साल भारतीय फंड्स तीन गुना बढ़कर CHF 3.54 अरब यानी लगभग 37,600 करोड़ रुपये तक पहुँच गए हैं। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में एक बड़ी छलांग है, जो स्विस बैंकों में जमा भारतीय संपत्ति की नई तस्वीर पेश करता है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह बढ़ोतरी काले धन के रूप में देखी जानी चाहिए, या यह सिर्फ वैश्विक वित्तीय लेनदेन का हिस्सा है?
स्विस बैंकों में भारतीय फंड्स की असली तस्वीर
रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल बढ़ोतरी का सिर्फ 10% हिस्सा सीधे ग्राहक खातों में है, जो लगभग CHF 346 मिलियन (करीब ₹3,675 करोड़) के बराबर है। बाकी पैसा वित्तीय मध्यस्थों और अन्य बैंकों के जरिए रखा गया है। इसका मतलब है कि अधिकांश धनराशि सीधे व्यक्तिगत भारतीय खाताधारकों के पास नहीं है, बल्कि यह कई वित्तीय संस्थाओं और इंटरमीडियरीज़ के माध्यम से स्विस बैंकिंग सिस्टम में जमा है।
क्या यह काला धन है?
स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने साफ़ किया है कि इन आंकड़ों का मतलब यह नहीं है कि सारी राशि काला धन है। भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच 2018 से ‘ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इन्फॉर्मेशन’ (AEOI) समझौता लागू है, जिसके तहत दोनों देशों की वित्तीय संस्थाएं खातों की जानकारी साझा करती हैं। यह पारदर्शिता काले धन को पकड़ने और उससे निपटने में मदद करती है। इसलिए, स्विस बैंक में जमा भारतीय फंड्स को सीधे तौर पर काले धन से जोड़ना सही नहीं होगा।
2023 में भारी गिरावट और 2024 में तेज़ उछाल
दिलचस्प बात यह है कि 2023 में स्विस बैंकों में भारतीय फंड्स में 70% की गिरावट देखी गई थी, लेकिन 2024 में अचानक तीन गुना बढ़ोतरी हुई। यह आर्थिक उतार-चढ़ाव, वैश्विक वित्तीय रूट्स में बदलाव, या भारत में कारोबारी रणनीतियों में परिवर्तन का परिणाम हो सकता है। इस तरह के उतार-चढ़ाव वैश्विक बाजारों में सामान्य हैं और जरूरी नहीं कि इसका मतलब काला धन हो।
भारत की स्थिति और विश्व स्तर पर तुलना
स्विस बैंकिंग डेटा में भारत अब 43वें स्थान पर है, जो कि पिछले साल के 67वें स्थान से बेहतर है। इसका मतलब है कि स्विस बैंकों में भारतीय फंड्स की मात्रा बढ़ी है। इसके विपरीत, पाकिस्तान की स्थिति खराब हुई है और बांग्लादेश के फंड्स में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा, ब्रिटेन, अमेरिका और वेस्ट इंडीज़ अभी भी स्विस बैंकिंग सिस्टम के शीर्ष फंड होल्डर्स बने हुए हैं।
क्या पारदर्शिता ही समाधान है?
काला धन और विदेशी बैंकिंग में जमा राशि को लेकर बहस लंबे समय से जारी है। हालांकि, अब ‘ऑटोमेटिक एक्सचेंज ऑफ इन्फॉर्मेशन’ जैसे समझौते पारदर्शिता बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। लेकिन क्या सिर्फ पारदर्शिता ही काले धन के मुद्दे का समाधान है? क्या हर बार विदेशी बैंक में धन वृद्धि को काले धन के रूप में देखना उचित है?
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