22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने का ऐतिहासिक फैसला लिया। इस निर्णय ने क्षेत्रीय जल नीति और भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नया मोड़ ला दिया है। भारत ने स्पष्ट किया कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” इस कदम को पाकिस्तान ने “युद्ध की कार्रवाई” करार दिया, जबकि भारत ने इसे आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई बताया। सिंधु जल संधि, जो 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी, भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे का आधार रही है। इसके तहत पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का पानी उपयोग करने का अधिकार है, जबकि भारत रावी, सतलुज और व्यास नदियों का उपयोग कर सकता है। भारत का यह निर्णय पाकिस्तान के लिए गंभीर चुनौती बन गया है, क्योंकि उसकी 80% से अधिक कृषि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है।
चीन-पाकिस्तान गठजोड़ और बांध परियोजनाओं में तेजी
भारत के इस फैसले के तुरंत बाद, चीन ने पाकिस्तान में अपनी रणनीतिक परियोजनाओं को गति देने का ऐलान किया। चाइना एनर्जी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन, जो 2019 से खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में मोहमंद हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, को निर्देश दिए गए हैं कि इस “राष्ट्रीय फ्लैगशिप” परियोजना को जल्द से जल्द पूरा किया जाए। साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, यह परियोजना 202 2026 में पूरी होने वाली थी, लेकिन अब इसे और तेजी से पूरा करने के लिए कंक्रीट भरने का काम शुरू हो चुका है। चीन के सरकारी प्रसारक सीसीटीवी ने इसे एक मील का पत्थर बताया, जो पाकिस्तान की ऊर्जा और जल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
मोहमंद बांध: पाकिस्तान की रणनीतिक परियोजना
मोहमंद बांध को बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और जल आपूर्ति के लिए एक बहुउद्देश्यीय परियोजना के रूप में डिजाइन किया गया है। यह 800 मेगावाट जलविद्युत उत्पन्न करेगा और खैबर पख्तूनख्वा की राजधानी पेशावर को प्रतिदिन 300 मिलियन गैलन पेयजल उपलब्ध कराएगा। यह परियोजना 2022 की विनाशकारी बाढ़ के बाद पाकिस्तान की जल प्रबंधन क्षमता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके अलावा, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत डायमर-भाषा बांध जैसी अन्य परियोजनाएं भी सिंधु नदी पर निर्माणाधीन हैं, जो पाकिस्तान की जल भंडारण क्षमता को बढ़ाने में मदद करेंगी।
चीन और पाकिस्तान के बीच सात दशकों से अधिक की कूटनीतिक साझेदारी रही है। चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड पहल के तहत पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है। भारत के सिंधु जल संधि निलंबन ने इस गठजोड़ को और मजबूत किया है। दूसरी ओर, भारत ने भी चेनाब, झेलम और सिंधु नदियों पर अपनी परियोजनाओं को तेज करने का फैसला किया है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अधिकारियों को इन नदियों पर बांधों और जल परियोजनाओं के निर्माण में तेजी लाने का निर्देश दिया है। भारत का यह कदम न केवल जल उपयोग को बढ़ाने बल्कि क्षेत्रीय प्रभाव को मजबूत करने की दिशा में भी है।
इस बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में, सिंधु नदी क्षेत्रीय शक्ति संतुलन का केंद्र बन गई है। भारत, पाकिस्तान और चीन की रणनीतियां न केवल जल संसाधनों बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास को भी प्रभावित करेंगी।
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