आगरा जिले में नाम बदलने की पहल: फतेहाबाद बना ‘सिंदूरपुरम’, बादशाही बाग बना ‘ब्रह्मपुरम’?

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले से एक अहम और चर्चित खबर सामने आई है, जिसने एक बार फिर नाम बदलने की राजनीति को केंद्र में ला दिया है। आगरा ज़िला पंचायत ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसके तहत फतेहाबाद का नाम बदलकर ‘सिंदूरपुरम’ और बादशाही बाग का नाम ‘ब्रह्मपुरम’ रखने की सिफारिश की गई है। यह प्रस्ताव ज़िला पंचायत की अध्यक्ष मंजू भदौरिया द्वारा पेश किया गया, और सभी सदस्यों ने इसका समर्थन किया।

नाम परिवर्तन का औचित्य

मंजू भदौरिया का कहना है कि फतेहाबाद और बादशाही बाग जैसे नाम गुलामी और मुग़ल शासन की याद दिलाते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन नामों को बदलने का उद्देश्य हमारी सांस्कृतिक पहचान को पुनः स्थापित करना है। उन्होंने कहा, “यह केवल नामों का बदलाव नहीं है, बल्कि हमारे आत्मसम्मान और सांस्कृतिक विरासत को पुनः जीवित करने की कोशिश है।”

फतेहाबाद के संदर्भ में प्रस्ताव में बताया गया है कि यह इलाका पहले ‘समूगढ़’ नाम से जाना जाता था। समूगढ़, अकबर और हेमू के बीच 1556 में हुई ऐतिहासिक लड़ाई का भी गवाह रहा है। वहीं ‘ब्रह्मपुरम’ नाम का सुझाव भगवान ब्रह्मा और ब्रह्मोस मिसाइल की शक्ति के प्रतीक रूप में दिया गया है, जो आध्यात्मिकता और तकनीकी प्रगति का समन्वय दर्शाता है।

प्रक्रिया और अगला कदम

हालांकि ज़िला पंचायत ने यह प्रस्ताव पारित कर दिया है, लेकिन इसे लागू करने का अंतिम निर्णय उत्तर प्रदेश सरकार के पास है। प्रस्ताव को अब राज्य सरकार के पास भेजा जाएगा, और वहां से अनुमति मिलने पर ही यह नाम परिवर्तन औपचारिक रूप से प्रभाव में आएगा।

ऐतिहासिक नाम बदलने की एक कड़ी

भारत में हाल के वर्षों में नाम परिवर्तन एक सामान्य चलन बन चुका है। इससे पहले ‘इलाहाबाद’ का नाम बदलकर ‘प्रयागराज’, ‘फैजाबाद’ का नाम बदलकर ‘अयोध्या’, और ‘गुड़गांव’ का नाम ‘गुरुग्राम’ किया जा चुका है। इन परिवर्तनों का उद्देश्य भारतीय संस्कृति और धार्मिक धरोहर को प्राथमिकता देना बताया गया था।

पक्ष और विपक्ष की राय

नाम परिवर्तन के इस प्रस्ताव को लेकर समाज में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। समर्थकों का कहना है कि इससे हमारी सांस्कृतिक पहचान को बल मिलेगा और बच्चों को अपने गौरवशाली इतिहास के बारे में जानने का अवसर मिलेगा। वहीं विरोधियों का कहना है कि नाम बदलना महज़ प्रतीकात्मक है और इससे जमीनी हकीकत नहीं बदलती।

इतिहासकारों और समाजशास्त्रियों की भी इस पर अलग-अलग राय है। कुछ मानते हैं कि नाम बदलना एक तरह से ‘इतिहास को मिटाने’ जैसा है, जबकि कुछ इसे ‘सांस्कृतिक पुनर्निर्माण’ मानते हैं।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

यह प्रस्ताव एक ओर राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे क्षेत्रीय जनता की भावनाओं को साधने का प्रयास किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या ऐसे बदलाव केवल चुनावी लाभ के लिए किए जा रहे हैं या वाकई में इनका उद्देश्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करना है?

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