मध्य पूर्व एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। ईरान और इजरायल के बीच चल रहे मिसाइल हमलों और सैन्य कार्रवाइयों ने न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक चिंता भी बढ़ा दी है। दोनों देशों के बीच टकराव अब केवल सीमित सैन्य संघर्ष नहीं रहा, बल्कि यह परमाणु संकट की दिशा में बढ़ता नजर आ रहा है।
ईरान-इजरायल संघर्ष: बढ़ता खतरा
ईरान और इजरायल के बीच मिसाइलों की अदला-बदली और हवाई हमले अब आम हो चुके हैं। इजरायल ने ईरानी सेना के शीर्ष अधिकारियों और उनके ठिकानों को निशाना बनाया, जबकि ईरान ने जवाबी हमलों में इजरायली शहरों को गंभीर क्षति पहुंचाई है। इन हमलों में आम नागरिकों की जानें गईं, जिससे मानवता भी कराह उठी है।
इस बीच ईरान ने यह संकेत दिया है कि वह परमाणु मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन उसकी शर्त है – अमेरिका इस संघर्ष से खुद को अलग रखे। ईरान खाड़ी देशों के माध्यम से यह संदेश दे रहा है कि उसकी प्राथमिकता अब तनाव घटाना और बातचीत की मेज़ पर लौटना है।
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डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनी और G7 से वापसी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा में चल रही G7 बैठक को बीच में ही छोड़ दिया और वाशिंगटन डीसी लौट आए। हालांकि उन्होंने इसकी वजह मध्य पूर्व का तनाव नहीं बताई, लेकिन सोशल मीडिया पर उन्होंने तेहरान के नागरिकों से शहर खाली करने की अपील करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी कार्रवाई के संकेत दे दिए।
ट्रंप के इस रवैये से यह साफ हो रहा है कि अमेरिका ईरान को दबाव में लाने की रणनीति पर काम कर रहा है। उन्होंने G7 द्वारा जारी इजरायल के समर्थन वाले बयान पर भी हस्ताक्षर नहीं किए, जो इस मुद्दे पर उनकी अलग नीति को दर्शाता है।
फोर्डो संयंत्र: इजरायल की सबसे बड़ी चुनौती
ईरान के फोर्डो यूरेनियम संवर्धन संयंत्र को नष्ट करना इजरायल के लिए अब तक सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। यह संयंत्र एक पर्वत के अंदर स्थित है, जिससे इसे पारंपरिक हथियारों से निशाना बनाना लगभग असंभव है। केवल अमेरिका के पास मौजूद ‘जीबीयू-57’ बंकर बस्टर बम ही इसे नष्ट कर सकते हैं। यही कारण है कि ईरान, अमेरिका को युद्ध से दूर रखने की कोशिश कर रहा है।
अमेरिकी सैन्य तैनाती: शक्ति प्रदर्शन या दबाव की रणनीति?
पेंटागन ने खाड़ी क्षेत्र में अतिरिक्त सैन्य बल तैनात करने की घोषणा की है। ‘यूएसएस निमित्ज’ नामक परमाणु एयरक्राफ्ट कैरियर, जिसमें 5,000 सैनिक और 60 से अधिक फाइटर जेट्स हैं, फारस की खाड़ी की ओर बढ़ रहा है। अमेरिका ने इसे “रक्षात्मक तैनाती” बताया है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह ईरान पर दबाव बनाने और कूटनीतिक वार्ता के लिए मनाने की कोशिश है।
क्या होगा आगे?
ईरान और इजरायल के बीच यह युद्ध अब वैश्विक राजनीति का अहम मोड़ बन चुका है। ट्रंप की चेतावनी, इजरायल का आक्रामक रवैया और अमेरिकी युद्धपोतों की मौजूदगी एक बड़े युद्ध की आशंका को जन्म दे रही है। हालांकि, ईरान की ओर से बातचीत की पेशकश एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन इसकी शर्त — युद्धविराम — अभी तक पूरी नहीं हुई है।
दुनिया की निगाहें अब अमेरिका और ईरान के संभावित कूटनीतिक संवाद पर हैं। यदि दोनों देश बातचीत की ओर बढ़ते हैं, तो यह संकट टल सकता है। वरना, यह संघर्ष केवल मध्य पूर्व ही नहीं, पूरे विश्व की शांति को खतरे में डाल सकता है।
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