22 जून 2025 की सुबह पूरी दुनिया के लिए खतरनाक संकेत लेकर आई। अमेरिकी सेना ने ईरान के तीन अहम न्यूक्लियर और मिलिट्री ठिकानों – नतांज, फोर्डो और इस्फहान – पर बमबारी कर दी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस ऑपरेशन को “बहुत सफल” करार दिया।
इनमें से फोर्डो न्यूक्लियर साइट सबसे अधिक संवेदनशील मानी जाती है, जहां यूरेनियम संवर्धन (Uranium Enrichment) का काम होता है। यह वही प्रक्रिया है, जो न्यूक्लियर बम बनाने के लिए ज़रूरी मानी जाती है।
क्यों हुआ अमेरिका का हमला?
इस घटना से पहले 13 जून को इज़राइल ने दावा किया था कि ईरान न्यूक्लियर बम बनाने की तैयारी कर रहा है। इसी आधार पर उसने ईरान के भीतर बड़ी सैन्य कार्रवाई की थी। जवाब में ईरान ने भी इज़राइल पर मिसाइल और ड्रोन से हमला किया था।
पिछले कुछ महीनों से अमेरिका और ईरान के बीच एक संभावित परमाणु समझौते को लेकर बातचीत चल रही थी, जिसमें ईरान को यूरेनियम संवर्धन रोकने और अमेरिका को आर्थिक प्रतिबंध हटाने पर सहमति बन सकती थी। लेकिन अब, यह बातचीत अधर में लटक चुकी है।
डोनाल्ड ट्रंप के इस हमले के बाद अब द्विपक्षीय रिश्तों के टूटने की आशंका बढ़ गई है।
ईरान का जवाब: “बम ज्ञान को नहीं मिटा सकते”
ईरान ने हमले की पुष्टि करते हुए यह कहा कि हमले से पहले ही फोर्डो साइट को खाली करा लिया गया था। ईरानी संसद के स्पीकर के सलाहकार मेहदी मोहम्मदी ने सोशल मीडिया पर लिखा: “हम फोर्डो पर हमले की उम्मीद पहले से कर रहे थे। लेकिन याद रखो – ज्ञान को बम से नहीं मिटाया जा सकता।”
इस बयान से साफ है कि ईरान फिलहाल हमले के दूरगामी जवाब की तैयारी कर रहा है।
क्या यह तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत है?
अमेरिका के सीधे सैन्य हस्तक्षेप के बाद अब यह सवाल ज़रूरी हो गया है कि क्या यह युद्ध खुले वैश्विक संघर्ष की ओर बढ़ रहा है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर ईरान ने अमेरिका पर जवाबी हमला किया, तो यह युद्ध पूरे मध्य-पूर्व और उसके बाहर फैल सकता है।
रूस, चीन, तुर्की, पाकिस्तान और यूरोपीय देश इस घटनाक्रम को गंभीर चिंता के साथ देख रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की आपात बैठक की भी मांग उठ रही है।
भारत के लिए इसका क्या मतलब है?
भारत एक तेजी से उभरती वैश्विक शक्ति है और अमेरिका, ईरान और इज़राइल – तीनों के साथ उसके महत्वपूर्ण कूटनीतिक और व्यापारिक संबंध हैं।
भारत को इस संकट के चलते तेल आपूर्ति, विदेश नीति और प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा से जुड़े कई बड़े फैसले जल्द लेने होंगे।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियन से बात कर शांति और कूटनीति की वकालत कर चुके हैं। भारत को इस वक्त एक संतुलित मध्यस्थ की भूमिका निभानी होगी।
समाधान बम नहीं, बातचीत है
इतिहास गवाह है कि युद्धों ने कभी स्थायी समाधान नहीं दिए। आज की वैश्विक स्थिति में एक चिंगारी पूरी दुनिया को भस्म कर सकती है। अमेरिका, ईरान और इज़राइल तीनों को कूटनीति के ज़रिए समाधान खोजने की ज़रूरत है।
भारत जैसे देशों को चाहिए कि वे संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों पर शांति स्थापना की पहल को आगे बढ़ाएं।
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