क्या भारत के युवा स्टार्टअप्स की दुनिया में केवल फूड डिलीवरी, सट्टेबाज़ी और फैंटेसी गेम्स को ही बिज़नेस का भविष्य मान बैठे हैं? स्टार्टअप महाकुंभ’ में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने एक ऐसा सवाल खड़ा कर दिया है। जो देश की युवा शक्ति को आईना दिखाता है। पीयूष गोयल ने कहा भारत में बड़ी संख्या में स्टार्टअप्स अब गिग इकॉनमी, फूड डिलीवरी, ऑनलाइन गेमिंग और फैंटेसी स्पोर्ट्स जैसी चीज़ों पर फोकस कर रहे हैं। जबकि दुनिया के बड़े देश — जैसे चीन — EVs, AI, बैटरी टेक्नोलॉजी, और साइबर सिक्योरिटी में अगला कदम रख चुके हैं। तो सवाल यही है – क्या हम टेक्नोलॉजी के सुपरपावर बनना चाहते हैं या फिर ‘कम वेतन वाली गिग जॉब्स’ से संतुष्ट हैं?
आज का युवा कहां देख रहा है अपना भविष्य?
आज की युवा पीढ़ी में इनोवेशन की कमी नहीं है, लेकिन बड़ी चिंता इस बात की है कि वो अपनी ऊर्जा किन क्षेत्रों में लगा रहा है। फूड डिलीवरी और गेमिंग स्टार्टअप्स ने भले ही मार्केट में तेजी से ग्रोथ दिखाई हो, लेकिन क्या ये मॉडल लंबे समय तक टिक पाएंगे? और क्या इससे देश को टेक्नोलॉजी की दिशा में आगे ले जाया जा सकता है?
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चीन जैसे देश कहां पहुंच चुके हैं?
चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों में स्टार्टअप्स का फोकस ग्रीन एनर्जी, क्वांटम कंप्यूटिंग, क्लीनटेक, और एडवांस AI पर है। वहां के युवा तकनीक से नए समाधान निकाल रहे हैं और हम?
क्या गिग इकॉनमी भविष्य है या एक ट्रैप?
गिग इकॉनमी यानी स्विगी, जोमैटो, उबर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर काम करने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है — लेकिन क्या यही ‘नौकरी’ है, या बस एक अस्थायी समाधान?
क्या यही है हमारा डिजिटल इंडिया का सपना?
सरकार और उद्योग जगत को चाहिए कि वो युवाओं को गाइड करे, उन्हें रिसर्च, डीप टेक, मैन्युफैक्चरिंग, हेल्थटेक और क्लाइमेटटेक जैसे क्षेत्रों में प्रेरित करे। शिक्षा संस्थानों और इनक्यूबेटर सेंटरों को भी सिर्फ ऐप बनाने की दौड़ से बाहर आकर ‘टेक्नोलॉजी-फॉर-सॉल्यूशन’ मानसिकता को बढ़ावा देना होगा।
भारत को अगर 21वीं सदी का तकनीकी महाशक्ति बनना है, तो हमें अपने स्टार्टअप कल्चर को रचनात्मक, नवोन्मेषी और समस्याओं को हल करने वाला बनाना होगा। वरना डर है कि कहीं हम केवल “ऑर्डर लेने वाली अर्थव्यवस्था” बनकर न रह जाएं।
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