मध्य पूर्व में इजरायल और ईरान के बीच तनाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है, जिससे वैश्विक स्तर पर अस्थिरता की संभावना बढ़ गई है। इस टकराव का कोई निश्चित नतीजा फिलहाल बताना मुश्किल है। यह संघर्ष परमाणु युद्ध जैसी तबाही भी ला सकता है या फिर कोई शांतिपूर्ण समाधान भी निकल सकता है। इस स्थिति में भारत को अपने हितों को ध्यान में रखते हुए बेहद सावधानी से काम करना होगा।
परिप्रेक्ष्य में अमेरिका और बहुध्रुवीय दुनिया
पहले अमेरिका दुनिया में सबसे बड़ी ताकत था और उसकी दादागिरी बरकरार थी। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका का वैश्विक प्रभुत्व कम हुआ है, जिससे बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था उभर रही है। अमेरिका अब सीधे तौर पर दूसरे देशों के झगड़ों में दखल कम करना चाहता है, जिसके कारण रूस और चीन जैसी ताकतें सक्रिय हुई हैं। इस बहुध्रुवीय स्थिति में भारत के लिए रणनीतिक चुनौतियां बढ़ गई हैं, क्योंकि अब विश्व राजनीति में संतुलन बनाए रखना कठिन हो गया है।
इजरायल-ईरान संघर्ष का भारत पर प्रभाव
इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों और उनके सहयोगियों पर आक्रमण शुरू कर दिया है। इससे ईरान और इजरायल के बीच तनाव चरम सीमा पर पहुंच सकता है। भारत के लिए यह चिंता की बात है क्योंकि यदि ईरान परमाणु हथियार विकसित करता है या उनके खतरनाक तत्व जिहादियों के हाथ लग जाते हैं, तो यह दक्षिण एशिया में भी अस्थिरता बढ़ा सकता है।
भारत और ईरान के संबंध लंबे समय से आर्थिक और रणनीतिक रूप से मजबूत रहे हैं। ईरान खाड़ी क्षेत्र में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है। यदि मध्य पूर्व में संघर्ष बढ़ा, तो तेल की कीमतों में बढ़ोतरी भारत की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डाल सकती है। इसके अलावा, भारत को अपने पड़ोसी देशों में आतंकवाद और सुरक्षा खतरों का भी सामना करना पड़ सकता है।
ट्रंप की रणनीति और इजरायल का बढ़ता असर
डोनाल्ड ट्रंप के समय अमेरिका ने वैश्विक संघर्षों से दूरी बनाने की कोशिश की। ट्रंप ने ना सिर्फ पुराने दुश्मनों रूस-चीन पर टैरिफ लगाए, बल्कि पुराने सहयोगी यूरोप और जापान को भी कड़ी नीतियों का सामना करना पड़ा। इससे इजरायल, जो पहले अमेरिका का छोटा सहयोगी था, आज खुद एक मजबूत और स्वायत्त शक्ति बन गया है। इजरायल ने खुद के परमाणु हथियारों और आधुनिक सैन्य उद्योग पर जोर दिया है और अब वह मध्य पूर्व में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है।
इजरायल-ईरान जंग की संभावना
इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाकर एयर स्ट्राइक की हैं, वहीं ईरान ने भी अपनी परमाणु गतिविधियों को तेज करने की बात कही है। ईरान 90% तक यूरेनियम संवर्धन कर सकता है, जो परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त है। इसके साथ ही वह ‘डर्टी बम’ जैसे खतरे भी पैदा कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर व्यापक आर्थिक और सामाजिक संकट आ सकता है।
सबसे बड़ा खतरा यह है कि यदि ईरान के परमाणु तत्व किसी जिहादी समूह के हाथ लग गए, तो वे न केवल इजरायल बल्कि भारत जैसे देशों को भी धमकी दे सकते हैं।
संभावित सकारात्मक बदलाव
सबसे अच्छा परिदृश्य यह होगा कि ईरान में सरकार बदले और कट्टरपंथी नेतृत्व खत्म हो। ईरान में अयातुल्लाह के शासन के खिलाफ प्रदर्शन बढ़ रहे हैं और देश की अर्थव्यवस्था भी संकट में है। अगर कोई लोकतांत्रिक सरकार बनती है, जो शांति और कूटनीति को प्राथमिकता दे, तो इससे मध्य पूर्व की स्थिरता बढ़ेगी। ऐसे में ईरान पर लगे प्रतिबंध हट सकते हैं और भारत को ऊर्जा, व्यापार तथा कूटनीतिक सहयोग में फायदा होगा।
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