नेशनल हेराल्ड पर राष्ट्रीय संग्राम: ‘वेंडेटा’ बनाम ‘ATM’? सोनिया-राहुल के खिलाफ चार्जशीट के बाद कांग्रेस का देशव्यापी विरोध

नेशनल हेराल्ड केस एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को आरोपी नंबर 1 और राहुल गांधी को आरोपी नंबर 2 बनाते हुए अपनी चार्जशीट दाखिल कर दी है। इसके तुरंत बाद कांग्रेस ने इसे “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” बताते हुए देशभर में जोरदार प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) इसे “गांधी परिवार के भ्रष्टाचार मॉडल” का पर्दाफाश बता रही है।

इस राजनीतिक टकराव के बीच एक बड़ा सवाल उभर रहा है — यह कार्रवाई कानून के दायरे में है या राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा? आइए समझते हैं इस केस की जड़, वर्तमान घटनाक्रम और इसके राजनीतिक मायने।

क्या है नेशनल हेराल्ड केस?

नेशनल हेराल्ड एक अंग्रेज़ी अख़बार था, जिसकी स्थापना 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी। यह अखबार Associated Journals Limited (AJL) के तहत चलता था। वक्त के साथ अखबार बंद हो गया, लेकिन उसकी हजारों करोड़ की संपत्तियां देशभर में अब भी मौजूद हैं।

कांग्रेस ने Young Indian Pvt Ltd नाम की एक कंपनी बनाई, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की 76% हिस्सेदारी है। यह कंपनी AJL की देनदारियों को संभालने के नाम पर उसकी संपत्ति की मालकिन बन गई। आरोप है कि यह सौदा बेहद कम कीमत पर और गैरकानूनी तरीके से किया गया, जिससे गांधी परिवार को व्यक्तिगत लाभ हुआ।

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ED की कार्रवाई और चार्जशीट

ED की जांच में सामने आया कि इस पूरे लेन-देन में वित्तीय अनियमितताएं हुईं। चार्जशीट में कहा गया है कि Young Indian के जरिए गांधी परिवार ने AJL की करीब 800 करोड़ रुपये की संपत्तियों पर नियंत्रण पा लिया, जबकि इसके बदले में सिर्फ कुछ लाख रुपये ही दिए गए।

चार्जशीट में सोनिया गांधी को मुख्य साजिशकर्ता बताया गया है और राहुल गांधी को सक्रिय भागीदार। इससे पहले दोनों नेताओं से पूछताछ भी की जा चुकी है।

कांग्रेस का पलटवार: राजनीतिक साज़िश?

चार्जशीट के तुरंत बाद कांग्रेस ने इसे “मोदी सरकार द्वारा लोकतंत्र की हत्या” करार दिया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा:
“यह पूरी तरह राजनीतिक प्रतिशोध है। जब-जब विपक्ष मजबूत होता है, तब-तब जांच एजेंसियों का सहारा लेकर आवाज़ दबाने की कोशिश होती है।”

दिल्ली से लेकर लखनऊ, जयपुर, भोपाल और पटना तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ईडी के खिलाफ प्रदर्शन किया। कई जगहों पर पुलिस हिरासत में भी लिया गया। प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा,
“सत्ता के बल पर सच्चाई को दबाया नहीं जा सकता। नेहरू-गांधी परिवार ने देश के लिए बलिदान दिया है, डराने की कोशिश न करें।”

भाजपा का जवाब: “ATM मॉडल” बेनकाब

वहीं, भाजपा ने कांग्रेस पर सीधा हमला बोला। पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा:
“यह कोई राजनीतिक बदले की कार्रवाई नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार की जांच है। कांग्रेस ने नेशनल हेराल्ड को गांधी परिवार का ATM बना दिया था। अब जब सच सामने आ रहा है, तो यह शोर मचाकर खुद को पीड़ित दिखाना चाहते हैं।”

बीजेपी नेताओं का कहना है कि अगर गांधी परिवार निर्दोष है तो अदालत में अपना पक्ष रखे, लेकिन सड़क पर उतर कर दबाव बनाना जांच एजेंसियों को कमजोर करने की कोशिश है।

राजनीतिक प्रभाव: कौन फायदा, किसे नुकसान?

इस पूरे प्रकरण का सीधा असर कांग्रेस की छवि और विपक्ष की एकता पर पड़ सकता है। जहां एक ओर पार्टी इसे “शहीद होने का मौका” मान सकती है, वहीं लंबी कानूनी प्रक्रिया और गंभीर आरोप कांग्रेस नेतृत्व को घेर सकते हैं।

उत्तर भारत में, जहां कांग्रेस पहले से कमजोर है, वहां इस मुद्दे पर जनसंपर्क बढ़ाना कांग्रेस के लिए सहानुभूति बटोरने का प्रयास हो सकता है। वहीं भाजपा इसे “भ्रष्टाचार मुक्त शासन” की अपनी नीति के रूप में पेश कर रही है।

नेशनल हेराल्ड केस सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं रह गया है, यह अब भारत की राजनीतिक लड़ाई का प्रतीक बन गया है। एक ओर सरकार है, जो इसे भ्रष्टाचार की जांच बताती है, दूसरी ओर विपक्ष है, जो इसे लोकतंत्र के खिलाफ हमला बता रहा है।

सच्चाई क्या है, यह अदालत तय करेगी। लेकिन जब तक फैसला नहीं आता, तब तक यह मुद्दा देश की राजनीति में ध्रुवीकरण का कारण बना रहेगा।

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