ऑपरेशन सिंदूर: भारत की आधुनिक युद्ध नीति का उदाहरण

सिंगापुर में आयोजित प्रतिष्ठित शांगरी-ला डायलॉग के मंच पर भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए एक अहम संदेश दिया—अब युद्ध केवल बंदूकों और सैनिकों तक सीमित नहीं रह गए हैं। युद्ध का भविष्य मल्टी-डोमेन, तकनीक आधारित और सूचनात्मक हो चुका है। ऑपरेशन सिंदूर न सिर्फ भारत की सैन्य ताकत का प्रदर्शन था, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत अब नए युग के युद्धों के लिए पूरी तरह तैयार है।

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1. मल्टी-डोमेन युद्ध की ओर कदम

जनरल चौहान ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर पारंपरिक युद्ध मॉडल से हटकर एक मल्टी-डोमेन दृष्टिकोण को अपनाने वाला पहला उदाहरण बना। इसमें थल, वायु, समुद्र, साइबर और अंतरिक्ष—सभी क्षेत्रों का एक साथ उपयोग किया गया। इस ऑपरेशन में सटीक हवाई हमलों, अंतरिक्ष से निगरानी और साइबर संचालन का बेहतरीन समन्वय था। यह स्पष्ट संकेत था कि आने वाले युद्ध सिर्फ सीमाओं पर नहीं, बल्कि डिजिटल और सूचना के मैदानों में भी लड़े जाएंगे।

2. फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं से लड़ाई

आज के युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं, सूचना और धारणा से भी लड़े जाते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत को फेक न्यूज़ और प्रोपेगेंडा से भी निपटना पड़ा। जनरल चौहान ने बताया कि सशस्त्र बलों ने लगभग 15% संसाधन सिर्फ गलत सूचनाओं के जवाब देने में खर्च किए। इस चुनौती को गंभीरता से लेते हुए दो महिला अधिकारियों को प्रवक्ता बनाया गया जिन्होंने शुरुआती दिनों में मीडिया को सटीक जानकारी दी।

3. साइबर सुरक्षा में आत्मनिर्भरता

ऑपरेशन के दौरान भारत पर कई साइबर हमले किए गए, लेकिन भारतीय सैन्य नेटवर्क की एयर-गैप्ड संरचना के कारण कोई असर नहीं हुआ। केवल कुछ शैक्षणिक वेबसाइटों को निशाना बनाया गया, लेकिन इससे ऑपरेशन की गति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह दिखाता है कि भारत ने साइबर सुरक्षा के मोर्चे पर महत्वपूर्ण मजबूती हासिल कर ली है।

4. तकनीकी एकीकरण की मिसाल

जनरल चौहान ने जोर देकर कहा कि आज के युद्धों में सिर्फ आधुनिक तकनीक होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसका इंटीग्रेशन यानी एकीकरण भी जरूरी है। ऑपरेशन सिंदूर में थल, जल, नभ और साइबर संसाधनों को रियल टाइम नेटवर्क में जोड़ा गया, जिससे सेना को तुरंत निर्णय लेने की क्षमता मिली। इससे भारत की युद्ध रणनीति में स्पीड, सटीकता और समन्वय तीनों का बेहतरीन उदाहरण देखने को मिला।

5. सैन्य ढांचे में लचीलापन और प्रशिक्षण

भविष्य के युद्धों में ड्रोन, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और मानवरहित तकनीक की भूमिका अहम होगी। जनरल चौहान ने बताया कि सेना को इन नई चुनौतियों के लिए विशेष इकाइयों की जरूरत होगी। इसलिए अब भारतीय सेना एकीकृत कमांड, तेजी से निर्णय लेने वाली संरचना और तकनीकी प्रशिक्षण की ओर बढ़ रही है।

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