शिक्षा के भारतीयकरण को लेकर देश में लगातार बहस चल रही है। केंद्र सरकार का कहना है कि शिक्षा प्रणाली में भारतीय मूल्यों, संस्कृति और परंपराओं को शामिल किया जाना चाहिए ताकि छात्रों को अपने इतिहास और जड़ों से जोड़ा जा सके। हालांकि, विपक्ष इस प्रक्रिया को लेकर लगातार सवाल उठा रहा है और इसे एकपक्षीय एजेंडा करार दे रहा है। तो आखिर विपक्ष को शिक्षा के भारतीयकरण से दिक्कत क्यों है? आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
शिक्षा के भारतीयकरण का क्या अर्थ है?
भारतीयकरण का मतलब शिक्षा को भारत के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और परंपरागत संदर्भों के अनुसार ढालना है। इसके तहत:
- भारतीय ज्ञान परंपरा, आयुर्वेद, योग और वेदों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है।
- महापुरुषों और भारतीय इतिहास के अनदेखे पहलुओं को प्रमुखता दी जा रही है।
- अंग्रेजी केंद्रित शिक्षा प्रणाली को संतुलित करते हुए क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- स्वदेशी दृष्टिकोण अपनाकर भारतीय मूल्यों को शिक्षा में समाहित किया जा रहा है।
सरकार का कहना है कि इससे युवा पीढ़ी आत्मनिर्भर बनेगी और भारतीय संस्कृति के साथ अपनी पहचान को मजबूत कर सकेगी।
विपक्ष की आपत्तियां क्यों?
1. शिक्षा का राजनीतिकरण करने का आरोप
विपक्ष का सबसे बड़ा आरोप यह है कि शिक्षा के भारतीयकरण के नाम पर सरकार शिक्षा का राजनीतिकरण कर रही है। उनका मानना है कि पाठ्यक्रम में बदलाव करके एक खास विचारधारा को थोपने की कोशिश की जा रही है।
2. वैज्ञानिक सोच को नुकसान पहुंचाने का डर
विपक्षी दलों और कई शिक्षाविदों का कहना है कि भारतीय परंपराओं और प्राचीन ग्रंथों को बढ़ावा देने के नाम पर आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को कमजोर किया जा सकता है। वे तर्क देते हैं कि शिक्षा को तार्किक और वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित होना चाहिए, न कि किसी धार्मिक या सांस्कृतिक एजेंडे पर।
3. इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप
विपक्ष को आशंका है कि भारतीयकरण के नाम पर इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सकता है। उनके अनुसार, जिन ऐतिहासिक घटनाओं को सरकार अपने अनुसार सही मानती है, उन्हें ही प्रमुखता दी जा रही है और कुछ तथ्यों को हटाया जा रहा है।
4. क्षेत्रीय भाषाओं पर ज़ोर, लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा में नुकसान
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने की बात की गई है। विपक्ष का कहना है कि इससे हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को तो मजबूती मिलेगी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी की उपेक्षा छात्रों के करियर के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
5. समावेशी दृष्टिकोण की कमी
विपक्ष का मानना है कि शिक्षा का भारतीयकरण एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने के बजाय एक खास विचारधारा को बढ़ावा दे सकता है। वे कहते हैं कि शिक्षा में विविधता जरूरी है, ताकि छात्रों को सभी दृष्टिकोणों से सीखने का मौका मिले।
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सरकार के पक्ष में तर्क
सरकार का कहना है कि विपक्ष का यह डर निराधार है। उनके मुताबिक:
- भारतीयकरण का मतलब सिर्फ संस्कृति थोपना नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जोड़ना है।
- दुनिया के कई देश अपनी शिक्षा प्रणाली में अपनी संस्कृति को महत्व देते हैं, तो भारत ऐसा क्यों न करे?
- क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने का मतलब यह नहीं है कि अंग्रेजी को हटाया जाएगा, बल्कि छात्रों को उनकी मातृभाषा में बेहतर शिक्षा मिलेगी।
- भारतीय इतिहास और परंपराओं को जानना जरूरी है, ताकि युवा भारतीय मूल्यों के प्रति गर्व महसूस करें।
क्या है समाधान?
- शिक्षा में संतुलन जरूरी है ताकि भारतीय संस्कृति को महत्व मिले लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी बना रहे।
- पाठ्यक्रम में बदलाव किसी एक विचारधारा के आधार पर न हों, बल्कि शिक्षाविदों और विशेषज्ञों की सलाह से किए जाएं।
- भारतीयकरण का अर्थ व्यापक हो, जिसमें देश के सभी समुदायों और उनके इतिहास को उचित स्थान मिले।
- अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं के बीच संतुलन बनाए रखा जाए, ताकि छात्र वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे न रहें।
शिक्षा का भारतीयकरण एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसे संतुलित और समावेशी तरीके से लागू किया जाना चाहिए। जहां सरकार इसे भारतीय पहचान को मजबूत करने का प्रयास मानती है, वहीं विपक्ष इसे शिक्षा के राजनीतिकरण के रूप में देखता है। असली सवाल यह है कि क्या यह बदलाव भारतीय छात्रों को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा, या फिर एक सीमित विचारधारा में बांध देगा?
आने वाले वर्षों में इस मुद्दे पर और अधिक बहस होगी, लेकिन एक संतुलित दृष्टिकोण ही इसका सही समाधान हो सकता है।
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