बांग्लादेश में सियासी संकट: यूनुस का इस्तीफा, हसीना की वापसी?

बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में फंस गया है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस ने 22 मई 2025 को अपनी सलाहकार परिषद की बैठक में इस्तीफे की धमकी दी। उन्होंने कहा कि यदि राजनीतिक दलों के बीच चुनावी सुधारों पर सहमति नहीं बनी, तो वह अपने पद से हट जाएंगे। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब बांग्लादेश पहले ही आर्थिक असमानता, सामाजिक उथल-पुथल और सियासी अनिश्चितता से जूझ रहा है। दूसरी ओर, पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की वापसी की अटकलों ने इस संकट को और गहरा कर दिया है।

2024 का छात्र आंदोलन: सत्ता का पतन

अगस्त 2024 में बांग्लादेश में छात्र आंदोलनों ने शेख हसीना की 15 साल पुरानी सरकार को उखाड़ फेंका। यह आंदोलन सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रणाली के खिलाफ शुरू हुआ, जो जल्द ही हिंसक प्रदर्शनों में बदल गया। इस दौरान 32 से अधिक लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए। बढ़ते दबाव के चलते शेख हसीना को इस्तीफा देकर भारत में शरण लेनी पड़ी। इसके बाद सेना ने हस्तक्षेप कर एक अंतरिम सरकार बनाई, जिसके प्रमुख सलाहकार के रूप में 84 वर्षीय अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस को नियुक्त किया गया।

यूनुस का नेतृत्व और सामने आई चुनौतियां

मोहम्मद यूनुस, जिन्हें 2006 में माइक्रोक्रेडिट के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला था, ने देश में स्थिरता और लोकतंत्र की बहाली का वादा किया था। उनकी नियुक्ति को छात्र आंदोलनकारियों ने समर्थन दिया, जो उन्हें एक तटस्थ और सम्मानित व्यक्तित्व मानते थे। लेकिन नौ महीने बाद भी उनकी सरकार कई चुनौतियों से घिरी है। चुनावी सुधारों पर असहमति, सेना के साथ तनाव और कट्टरपंथी संगठनों का दबाव उनकी स्थिति को कमजोर कर रहा है।

इस्तीफे की धमकी के पीछे कारण

यूनुस ने अपनी नाराजगी के कई कारण बताए। सबसे बड़ा मुद्दा है चुनावी सुधारों पर असहमति। उन्होंने 2026 तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का वादा किया था, लेकिन बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) तत्काल चुनाव की मांग कर रही है। बीएनपी ने यूनुस पर सत्ता को लंबे समय तक अपने पास रखने का आरोप लगाया। इसके अलावा, सेना के साथ उनके तनावपूर्ण संबंध भी एक बड़ा कारण हैं। सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने दिसंबर 2025 तक चुनाव कराने का निर्देश दिया है। म्यांमार के साथ मानवीय गलियारे और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति जैसे मुद्दों पर भी मतभेद सामने आए हैं।

कट्टरपंथी दबाव और हसीना की वापसी की अटकलें

यूनुस पर जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे कट्टरपंथी संगठनों का समर्थन लेने के आरोप हैं। इन संगठनों के दबाव में वह खुद को “बंधक जैसा” महसूस कर रहे हैं। दूसरी ओर, शेख हसीना की वापसी की अटकलों ने सियासी माहौल को और गरमा दिया है। भारत में रह रही हसीना ने अपनी पार्टी अवामी लीग को संगठित करने और सक्रिय राजनीति में लौटने की इच्छा जताई है। उनकी पार्टी ने 1 फरवरी 2025 से देशव्यापी प्रदर्शनों की घोषणा की थी, जिसमें यूनुस सरकार के इस्तीफे की मांग की गई। हालांकि, यूनुस सरकार ने अवामी लीग पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत प्रतिबंध लगा दिया, जिसे कई विश्लेषकों ने राजनीतिक प्रतिशोध माना।

भविष्य की अनिश्चितता

यूनुस के इस्तीफे की धमकी और हसीना की वापसी की अटकलों ने बांग्लादेश को अनिश्चितता के दौर में धकेल दिया है। यदि यूनुस इस्तीफा देते हैं, तो सत्ता का शून्य पैदा हो सकता है, जिसका फायदा कट्टरपंथी ताकतें उठा सकती हैं। वहीं, हसीना की वापसी से हिंसा और अस्थिरता बढ़ने की आशंका है। बांग्लादेश की जनता, जो पहले ही आर्थिक और सामाजिक संकटों से जूझ रही है, अब स्थिरता और शांति की उम्मीद कर रही है।

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