बाबा धीरेंद्र शास्त्री पर सियासी सवाल,क्या धर्म बन गया है राजनीति का नया मंच?

बाबा धीरेंद्र शास्त्री, जिन्हें लोग बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी जानते हैं, एक लोकप्रिय धार्मिक कथावाचक हैं। उनकी कथाओं और चमत्कारों को लेकर देशभर में बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। मगर हाल ही में उनका नाम एक बार फिर सियासी विवाद में घिर गया है। समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बाबा धीरेंद्र शास्त्री पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिनमें कथाओं के बदले भारी-भरकम फीस वसूलने और “अंडर टेबल पेमेंट” लेने की बात कही गई है।यह बयान सिर्फ एक राजनेता की टिप्पणी नहीं रह गया है — इसने देश को दो हिस्सों में बाँट दिया है। एक तरफ वे लोग हैं जो बाबा धीरेंद्र शास्त्री को आस्था का प्रतीक मानते हैं, और दूसरी ओर वे लोग जो कथावाचकों की कमर्शियल गतिविधियों पर सवाल उठा रहे हैं। सवाल अब सीधा है: क्या भक्ति भी अब बिजनेस बन चुकी है?

धर्म बनाम राजनीति टकराव या गठजोड़?

अखिलेश यादव का बयान न केवल बाबा धीरेंद्र शास्त्री को लेकर है ।बल्कि यह इशारा करता है कि अब धर्म भी राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन गया है। उनका सवाल था क्या कोई व्यक्ति बाबा को अपने घर बुला सकता है । कथा करवाने के लिए? वो तो 50 लाख रुपए मांगते हैं! यह सीधा हमला धार्मिक आयोजनों में लगने वाली मोटी फीस और कथावाचकों की विलासिता पूर्ण जीवनशैली पर है।विपक्षी नेताओं और सोशल मीडिया पर यह मुद्दा तेज़ी से वायरल हो रहा है। कुछ लोग अखिलेश की बेबाकी की तारीफ कर रहे हैं, तो कुछ इसे चुनावी स्टंट बता रहे हैं।तो क्या ये बयान सिर्फ एक सस्ती सुर्खी बटोरने की कोशिश है। या फिर सचमुच यह सवाल उठाना ज़रूरी हो गया था?

भक्ति या बिजनेस कहां खड़ा है समाज?

धार्मिक आयोजन, प्रवचन, कथा ये सब भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं। पर पिछले कुछ वर्षों में इनमें दिखने वाली भव्यता, प्रचार और खर्चीले इंतज़ाम लोगों को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। कई कथावाचक आज ब्रांड बन चुके हैं । उनके नाम पर टिकट बिकते हैं, VIP पास बनते हैं और सोशल मीडिया पर उनकी फैन फॉलोइंग करोड़ों में है।ऐसे में सवाल उठता है । क्या यह आस्था की सेवा है या लाभ का साधन?क्या भक्तों की भावनाओं का व्यापार हो रहा है? क्या आम श्रद्धालु की पहुंच इन धार्मिक कार्यक्रमों तक रह भी पाई है?बाबा धीरेंद्र शास्त्री पर लगे आरोप इन सभी सवालों को हवा दे रहे हैं।

सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया दो टूक राय

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे ट्विटर (अब X), फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इस मुद्दे पर भारी बहस चल रही है। कुछ यूजर्स बाबा का समर्थन करते हुए कह रहे हैं। कि “बाबा लोगों को अध्यात्म से जोड़ते हैं, उन्हें फीस लेना गलत नहीं”, तो कुछ लोग लिख रहे हैं, “धर्म अब शो बन चुका है, भावनाओं का बाजार।”कुछ ने ये भी सवाल उठाया है कि क्या सरकार को ऐसे आयोजनों की वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए?

क्या होना चाहिए हमारा रुख?

इस पूरे विवाद के केंद्र में सिर्फ बाबा धीरेंद्र शास्त्री नहीं हैं।बल्कि धर्म और राजनीति का मेल, भक्ति और पैसे का रिश्ता, और जनता की सोच का परिवर्तन भी है। अखिलेश यादव के बयान ने जो सवाल खड़े किए हैं। उन्हें सिर्फ एक राजनीतिक बयान समझकर नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

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