पश्चिम बंगाल में चुनावी घमासान के बीच अब एक बड़ा राजनीतिक बयान सामने आया है।कई नेताओं और संगठनों ने खुलकर कहा है कि बंगाल में चुनाव के दौरान राष्ट्रपति शासन लागू किया जाना चाहिए। इस मांग ने सियासी हलकों में नए विवाद को जन्म दे दिया है।
क्यों उठी राष्ट्रपति शासन की मांग?
हाल ही में बंगाल में हुए चुनाव प्रचार और नामांकन प्रक्रिया के दौरान कई हिंसक झड़पें, हमले और दहशत फैलाने वाली घटनाएं सामने आई हैं। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह विफल रही है।प्रशासन पक्षपाती है और निष्पक्ष चुनाव असंभव हो गया है।बीजेपी और कुछ अन्य दलों ने इस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
नेताओं के बयान ने बढ़ाया सियासी तापमान
एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा जब तक बंगाल में राष्ट्रपति शासन नहीं लगता तब तक फेयर चुनाव की उम्मीद नहीं की जा सकती। आम जनता डर के माहौल में वोट नहीं डाल सकती। वहीं दूसरी ओर, टीएमसी ने इस मांग को सिरे से खारिज करते हुए कहा ये बीजेपी की चाल है ताकि जनता के जनादेश को दबाया जा सके। बंगाल में लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।
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जनता क्या कहती है?
सोशल मीडिया पर इस बयान को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ गई है।एक यूज़र ने लिखा –अगर चुनाव के नाम पर खून-खराबा हो रहा है तो राष्ट्रपति शासन ही एकमात्र विकल्प है।दूसरे ने कहा –राजनीतिक फायदे के लिए राज्य के स्वाभिमान पर हमला किया जा रहा है।
चुनाव आयोग की भूमिका अब अहम
इस पूरे घटनाक्रम में चुनाव आयोग की भूमिका पर सबकी निगाहें हैं।क्या आयोग बंगाल में सुरक्षा बढ़ाएगा?या फिर किसी बड़े संवैधानिक कदम की सिफारिश की जाएगी?बंगाल में चुनाव को लेकर राजनीति, हिंसा और बयानबाज़ी –तीनों का मिला-जुला स्वरूप एक गंभीर स्थिति पैदा कर रहा है।अब देखना है कि क्या राष्ट्रपति शासन की यह मांग राजनीतिक हथियार बनकर रह जाएगी या वास्तव में कोई संवैधानिक कदम उठाया जाएगा।
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