राकेश टिकैत का धरना: पंजाब से आई कंबाइन मशीनों को रोके जाने पर भड़के किसान नेता

भारतीय किसान यूनियन (BKU) के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत एक बार फिर किसानों के मुद्दे पर संघर्षरत हैं। इस बार मामला पंजाब से आई कंबाइन मशीनों (गेहूं काटने की मशीनों) को रोके जाने का है। सैल्स टैक्स विभाग द्वारा इन मशीनों को रोके जाने पर राकेश टिकैत ने इसका कड़ा विरोध किया और धरने पर बैठ गए।

इस घटना ने एक बार फिर से किसान आंदोलन की यादें ताजा कर दी हैं और किसानों के अधिकारों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। टिकैत ने आरोप लगाया कि यह कदम जानबूझकर उठाया गया है ताकि पंजाब के किसानों को परेशान किया जा सके। इस मामले ने अब राजनीतिक रूप भी ले लिया है, क्योंकि विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है।

क्या है पूरा मामला?

पंजाब और हरियाणा के किसान गेहूं कटाई के लिए कंबाइन मशीनों का इस्तेमाल करते हैं, जो समय की बचत के साथ-साथ उत्पादन को भी बेहतर बनाती हैं। ये मशीनें फसल कटाई के मौसम में अलग-अलग राज्यों में भेजी जाती हैं, ताकि किसान बिना किसी रुकावट के फसल काट सकें।

हालांकि, इस बार सैल्स टैक्स विभाग ने पंजाब से आई कंबाइन मशीनों को रोक दिया, जिससे किसानों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

  • किसानों का कहना है कि इस तरह की रोक पहले कभी नहीं लगाई गई थी।
  • राकेश टिकैत ने इसे किसानों के खिलाफ साजिश करार दिया और कहा कि यह कदम केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीति का हिस्सा है।
  • उन्होंने सड़क पर बैठकर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया और मांग की कि मशीनों को तुरंत छोड़ा जाए।

राकेश टिकैत के आरोप

धरने पर बैठकर राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए।

  1. किसानों को परेशान करने की साजिश – टिकैत ने कहा कि सरकार किसानों को बेवजह परेशान कर रही है और पंजाब के किसानों को टारगेट किया जा रहा है।
  2. सरकार की किसान विरोधी नीति – उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार नए-नए तरीके खोजकर किसानों की आजीविका को प्रभावित कर रही है।
  3. व्यापारिक बहाने से रोक – टिकैत ने दावा किया कि टैक्स नियमों के नाम पर मशीनों को रोका गया, लेकिन असल में यह किसानों को आर्थिक नुकसान पहुंचाने की चाल है।
  4. न्याय न मिलने तक संघर्ष जारी रहेगा – उन्होंने यह भी ऐलान किया कि जब तक मशीनों को छोड़ने का आदेश नहीं दिया जाता, वे अपना विरोध जारी रखेंगे।

प्रशासन का पक्ष

इस पूरे विवाद पर प्रशासन ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी।

  • सैल्स टैक्स विभाग का कहना है कि मशीनों को जांच के लिए रोका गया है और इसमें किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया।
  • प्रशासन ने कहा कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसका पालन हर साल किया जाता है।
  • सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, अगर सभी दस्तावेज सही होते हैं, तो मशीनों को जल्द ही छोड़ दिया जाएगा।

हालांकि, किसानों का कहना है कि इस तरह की जांच पहले कभी इतनी सख्ती से नहीं हुई और इस बार जानबूझकर मशीनों को रोका गया।

सोशल मीडिया पर बढ़ता विरोध

यह मामला अब सोशल मीडिया पर भी गर्मा चुका है।

  • ट्विटर पर #KisanAndolan और #RakeshTikaitProtest ट्रेंड करने लगे हैं।
  • किसान संगठनों ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया और इसे “किसान विरोधी नीति” बताया।
  • आम लोग भी इस मुद्दे पर बंटे हुए नजर आ रहे हैं, जहां कुछ लोग सरकार के नियमों का समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ किसानों के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं

किसान आंदोलन पहले ही एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है और इस मामले ने एक बार फिर से राजनीतिक दलों को सरकार के खिलाफ बोलने का मौका दे दिया है।

विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया

  1. कांग्रेस – कांग्रेस ने इस मामले पर सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि यह किसानों की आवाज दबाने की एक और कोशिश है। पार्टी नेताओं ने कहा कि किसानों को डराने की साजिश चल रही है।
  2. आम आदमी पार्टी (AAP) – आप ने इसे किसानों के खिलाफ एक अन्याय बताया और कहा कि सरकार को तुरंत मशीनों को छोड़ना चाहिए।
  3. शिरोमणि अकाली दल (SAD) – अकाली दल ने इस मामले को पंजाब के किसानों के साथ भेदभाव करार दिया और केंद्र सरकार से जवाब मांगा।

सरकार का बचाव

वहीं, केंद्र सरकार ने इस आरोप को खारिज कर दिया और कहा कि यह एक “सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया” है। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि टैक्स नियमों का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य है और इसमें कोई राजनीति नहीं है।

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क्या हो सकता है आगे?

  • अगर सरकार ने जल्द ही मशीनों को छोड़ने का फैसला नहीं किया, तो यह मामला और बड़ा बन सकता है।
  • किसान संगठन इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन शुरू कर सकते हैं।
  • सरकार को किसानों और प्रशासन के बीच संतुलन बनाना होगा ताकि किसी भी पक्ष को नुकसान न हो।

राकेश टिकैत का यह धरना एक बार फिर से यह दिखाता है कि किसान अपने अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं।

  • सरकार और किसानों के बीच की खाई अभी भी बनी हुई है।
  • किसान अब किसी भी तरह की परेशानी को चुपचाप सहने के मूड में नहीं हैं।
  • यह मामला जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन सकता है।

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