राजस्थान के रणथंभौर ने एक बार फिर इतिहास के पन्नों में एक भावुक अध्याय जोड़ा है। रणथंभौर टाइगर रिजर्व की सबसे मशहूर और लोकप्रिय बाघिनों में से एक एरोहेड (T-84) अब इस दुनिया में नहीं रही। गुरुवार को वन विभाग के अधिकारियों ने इंस्टाग्राम पर एक आधिकारिक पोस्ट के जरिए यह दुखद सूचना साझा की।14 वर्ष की उम्र में एरोहेड का निधन हड्डी के कैंसर (Bone Cancer) के चलते हुआ। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थी और उसका उपचार लगातार जारी था। लेकिन इस सप्ताह, जैसे ही उसकी बेटी को एक अन्य टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित किया गया, उसी दिन कुछ ही घंटों के भीतर एरोहेड ने अंतिम सांस ली। यह सिर्फ एक बाघिन की मौत नहीं थी, बल्कि रणथंभौर के जंगलों के एक युग का अंत था।
Air India AI171 क्रैश: डैमेज ब्लैक बॉक्स से जांच में उलझन, अब क्या?
एरोहेड (T-84): एक पहचान, एक विरासत
एरोहेड, जिसे टी-84 (T-84) के नाम से जाना जाता है, न सिर्फ एक बाघिन थी बल्कि वह रणथंभौर की जंगल-कथा की हीरोइन थी। उसका नाम एरोहेड इसलिए पड़ा क्योंकि उसके माथे पर तीर के निशान जैसा एक विशेष निशान था। वह मशहूर बाघिन कृष्णा (T-19) की बेटी थी और अपनी मां की तरह ही उसने रणथंभौर की घाटियों, नालों और पहाड़ियों पर राज किया। अपनी जिंदगी में एरोहेड ने कई शावकों को जन्म दिया और उन्हें जंगल की जिंदगी सिखाई। उसके कारण रणथंभौर की बाघों की संख्या में बढ़ोतरी और जैव विविधता के संतुलन में अहम योगदान रहा।
मौत से पहले बेटी का ट्रांसफर – एक इमोशनल मोड़
एरोहेड की मौत जितनी दर्दनाक थी उतनी ही भावुक करने वाली यह बात भी रही कि उसकी बेटी को कुछ ही घंटों पहले एक अन्य बाघ अभयारण्य में शिफ्ट किया गया था। ऐसा लगा मानो मां-बेटी के संबंध का अंतिम अध्याय पूरा हुआ हो, और इसके तुरंत बाद एरोहेड इस दुनिया को अलविदा कह गई।यह घटना वन्यजीव प्रेमियों, फोटोग्राफर्स और प्राकृतिक संरक्षण से जुड़े संगठनों के लिए एक झटका रही। सोशल मीडिया पर हजारों लोगों ने एरोहेड को श्रद्धांजलि दी, जिसमें उसे एक “जंगल की रानी”, “रणथंभौर की आत्मा” और “टाइगर लीजेंड” तक कहा गया।
एरोहेड की विरासत और रणथंभौर का भविष्य
रणथंभौर की कहानी एरोहेड के बिना अधूरी है।
- उसने न सिर्फ बाघों की संख्या बढ़ाई
- बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा दिया, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका को मजबूती मिली
- उसकी मौजूदगी ने कई फोटोग्राफरों और डॉक्युमेंट्री निर्माताओं को प्रेरित किया
अब जब वह नहीं रही, उसकी शावक और बेटी उसकी विरासत को आगे बढ़ाएंगे। वन विभाग भी इस बात का पूरा ध्यान रख रहा है कि बाघों का पर्यावरण संतुलन बना रहे और एरोहेड जैसे बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
संबंधित पोस्ट
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025: ईशा योग केंद्र में जवानों ने दिखाया अनुशासन और आत्मबल
योग दिवस 2025 के लिए टॉप 10 नए शुभकामना संदेश , तन-मन को शांति और ऊर्जा से भर देंगे
भारत का ऑपरेशन सिंधु: ईरान में फंसे नागरिकों की सुरक्षित निकासी का व्यापक अभियान