एक छोटी सी चूक, बड़ी चुनौती
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान दिन-रात देश की सरहदों की रक्षा में तैनात रहते हैं। उनकी एक छोटी सी गलती भी भारी पड़ सकती है। ऐसा ही एक वाकया पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में हुआ, जहां बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ गलती से पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गए। यह घटना न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय बन गई थी। लेकिन भारत की कूटनीतिक कोशिशों और दृढ़ संकल्प के चलते जवान सुरक्षित वापस लौट आए। आइए जानते हैं इस प्रेरक कहानी को।
क्या हुआ था उस दिन?
23 अप्रैल 2025 की बात है। पूर्णम कुमार शॉ, बीएसएफ की एक बटालियन में पंजाब के ममदोट इलाके में तैनात थे। उस दिन भीषण गर्मी थी और उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी। ड्यूटी के दौरान थकान महसूस होने पर वे एक पेड़ की छांव में थोड़ा आराम करने बैठ गए। इसी दौरान, अनजाने में वे जीरो लाइन पार कर पाकिस्तान की सीमा में चले गए। यह एक ऐसी गलती थी, जिसका अंजाम गंभीर हो सकता था।
पाकिस्तानी रेंजर्स ने पकड़ा
सीमा पार करते ही पाकिस्तानी रेंजर्स ने पूर्णम को हिरासत में ले लिया। उनके हथियार और अन्य सामान भी जब्त कर लिए गए। जैसे ही यह खबर भारतीय अधिकारियों तक पहुंची, बीएसएफ और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने तुरंत कार्रवाई शुरू की। पाकिस्तानी अधिकारियों से संपर्क किया गया और बताया गया कि जवान हाल ही में इस क्षेत्र में तैनात हुआ था। उसे जीरो लाइन की सटीक जानकारी नहीं थी और उसकी तबीयत भी खराब थी।
लंबी बातचीत, कठिन राह
शुरुआत में पाकिस्तान ने जवान को वापस करने से इनकार कर दिया। कई दौर की बातचीत और फ्लैग मीटिंग्स के बावजूद कोई ठोस हल नहीं निकला। इस बीच, कश्मीर के पहलगाम में एक आतंकी हमले ने स्थिति को और जटिल कर दिया। लेकिन भारत ने हार नहीं मानी। कूटनीतिक दबाव और लगातार प्रयासों के चलते पाकिस्तान को आखिरकार झुकना पड़ा।

वापसी का ऐतिहासिक पल
कई दिनों की अनिश्चितता के बाद वह दिन आया, जब पूर्णम कुमार शॉ को अटारी-वाघा बॉर्डर के रास्ते भारत वापस लाया गया। उनके चेहरे पर थकान के निशान थे, लेकिन आंखों में देश वापसी की खुशी और गर्व साफ झलक रहा था। बीएसएफ अधिकारियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। मेडिकल जांच के बाद उन्हें उनकी यूनिट में भेजा गया, जहां उनके साथियों ने भी राहत की सांस ली।
क्या सिखाती है यह कहानी?
यह घटना सिर्फ एक जवान की गलती और वापसी की कहानी नहीं है। यह भारत की उस अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है, जो अपने हर नागरिक, हर जवान के लिए है। चाहे वह सीमा पर हो या सीमा के उस पार, भारत अपने लोगों को कभी अकेला नहीं छोड़ता। पूर्णम की वापसी इस बात का सबूत है कि देश अपने सैनिकों की सुरक्षा और सम्मान के लिए हर संभव कोशिश करता है।
बीएसएफ का अटल संकल्प
बीएसएफ के जवान हर पल देश की हिफाजत में जुटे रहते हैं। विषम परिस्थितियों में भी वे अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटते। पूर्णम की कहानी हमें याद दिलाती है कि सैनिकों का जीवन आसान नहीं होता। उनकी एक छोटी सी चूक भी बड़ी चुनौती बन सकती है। लेकिन यह भी सच है कि देश और उसकी सेना हर कदम पर उनके साथ खड़ी रहती है।
संबंधित पोस्ट
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025: ईशा योग केंद्र में जवानों ने दिखाया अनुशासन और आत्मबल
योग दिवस 2025 के लिए टॉप 10 नए शुभकामना संदेश , तन-मन को शांति और ऊर्जा से भर देंगे
भारत का ऑपरेशन सिंधु: ईरान में फंसे नागरिकों की सुरक्षित निकासी का व्यापक अभियान