इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर के बीच चल रहे विवाद में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मस्जिद मैनेजमेंट कमेटी की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की गई थी। इस फैसले से मस्जिद कमेटी को बड़ा झटका लगा है, जबकि हिंदू पक्ष ने इसे अपनी जीत के रूप में देखा है। यह मामला संभल की जिला अदालत में चल रहा है, जहां मस्जिद के सर्वे को लेकर विवाद चल रहा है।
संभल में जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर के बीच का विवाद लंबे समय से चर्चा में रहा है। मस्जिद कमेटी ने ट्रायल कोर्ट में चल रहे एक मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी। इस मुकदमे में मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया गया था, जिसके खिलाफ मस्जिद कमेटी ने पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख करने का निर्देश दिया। इसके बाद हाई कोर्ट में सुनवाई हुई, जहां मस्जिद कमेटी की याचिका को खारिज कर दिया गया।
हिंदू पक्ष के वकील, एडवोकेट गोपाल शर्मा ने इस मामले में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि 19 नवंबर 2024 को हिंदू पक्ष ने एक याचिका दायर की थी, जिसके आधार पर कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया था। सर्वे को दो चरणों में पूरा किया गया। मस्जिद कमेटी ने इस सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले को हाई कोर्ट में भेज दिया। एडवोकेट शर्मा ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला दो प्रमुख बिंदुओं पर आधारित होगा। पहला, क्या सिविल जज सीनियर डिवीजन, संभल को सर्वे का आदेश देने का अधिकार था? दूसरा, इस मामले की सुनवाई संभल की सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में होगी या किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित की जाएगी।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल को कमेटी ऑफ मैनेजमेंट, शाही जामा मस्जिद, संभल को उत्तर प्रदेश सरकार की स्टेटस रिपोर्ट का जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि विवादित कुआं मस्जिद की जमीन पर नहीं, बल्कि इसके बाहर स्थित है। इस जानकारी ने मामले को और जटिल बना दिया, क्योंकि मस्जिद कमेटी का दावा था कि कुआं उनकी संपत्ति का हिस्सा है। हाई कोर्ट के हालिया फैसले ने मस्जिद कमेटी के दावों को और कमजोर कर दिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है। संभल में जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर का विवाद धार्मिक संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है, और इस मामले में हर फैसला दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण है। हिंदू पक्ष का कहना है कि सर्वे का आदेश ऐतिहासिक और पुरातात्विक तथ्यों को सामने लाने के लिए जरूरी था, जबकि मस्जिद कमेटी इसे अपनी संपत्ति पर अनावश्यक हस्तक्षेप मानती है।
अब सभी की निगाहें हाई कोर्ट के अगले कदम पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि सर्वे का आदेश कानूनी रूप से सही था या नहीं। साथ ही, मामले की सुनवाई किस अदालत में होगी, यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है। इस फैसले का असर न केवल संभल, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में धार्मिक और कानूनी मसलों पर पड़ सकता है। दोनों पक्ष इस मामले में अपनी-अपनी जीत के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं, और हाई कोर्ट का यह फैसला इस विवाद में एक नया मोड़ ला सकता है।
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