संयुक्त किसान मोर्चा की केंद्र से अपील अमेरिका से व्यापार समझौते पर पहले संसद और राज्यों से सलाह लें

संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) जो देशभर के लगभग 500 किसान संगठनों का साझा मंच है — ने 26 जून 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक गंभीर अपील की है। SKM ने कहा है कि केंद्र सरकार अमेरिका के साथ किसी भी द्विपक्षीय व्यापार समझौते में तब तक आगे न बढ़े जब तक उसकी विस्तृत जानकारी संसद में नहीं रखी जाती और राज्य सरकारों, किसान संगठनों तथा श्रमिक यूनियनों से परामर्श नहीं किया जाता।

किसानों की चेतावनी राष्ट्रीय हितों और कृषि को न हो नुकसान

संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि वे इस बात से चिंतित हैं कि अमेरिका के साथ प्रस्तावित व्यापार समझौता, जिसे इंडिया-यूएस ट्रेड डील कहा जा रहा है, से भारतीय कृषि, घरेलू उद्योग और राष्ट्रीय हितों को गंभीर नुकसान पहुँच सकता है। मोर्चा का दावा है कि ऐसे समझौते बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में होते हैं और इसका सीधा असर छोटे किसानों, मजदूरों और स्थानीय उद्योगों पर पड़ता है।

संविधान और राज्य सूची का मुद्दा

SKM ने यह भी ज़ोर दिया कि भारत का संविधान कृषि और उद्योग को राज्य सूची के अंतर्गत रखता है। इसका मतलब है कि इन विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार मुख्यतः राज्य सरकारों को है। ऐसे में किसी भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौते को लागू करने से पहले केंद्र सरकार को राज्यों की सहमति लेनी जरूरी है।

SKM का आधिकारिक बयान

संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने बयान में कहा हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह करते हैं कि अमेरिका के साथ कोई भी व्यापार समझौता करने से पहले उसका मसौदा संसद में प्रस्तुत किया जाए। यह आवश्यक है कि जन प्रतिनिधियों, किसान संगठनों, श्रमिक यूनियनों और राज्य सरकारों से चर्चा कर उनके सुझाव लिए जाएं

संभावित खतरे क्या हो सकते हैं व्यापार समझौते के दुष्परिणाम?

  1. कृषि क्षेत्र में विदेशी प्रतिस्पर्धा:
    अमेरिकी कृषि उत्पादों की भारत में प्रवेश से घरेलू किसानों को भारी नुकसान हो सकता है, क्योंकि अमेरिकी किसानों को भारी सब्सिडी मिलती है।
  2. बीज, उर्वरक और तकनीकी नियंत्रण:
    व्यापार समझौते में पेटेंट और बौद्धिक संपदा के प्रावधानों से भारतीय किसानों की बीजों पर पारंपरिक पहुँच खतरे में पड़ सकती है।
  3. स्थानीय उद्योगों को नुकसान:
    सस्ते अमेरिकी उत्पादों की बाढ़ से घरेलू लघु और कुटीर उद्योगों को भी संकट का सामना करना पड़ सकता है।
  4. मजदूरों के अधिकारों में कटौती
    समझौते के तहत श्रम नियमों में ढील की संभावना से मजदूर वर्ग की सुरक्षा कमजोर हो सकती है।

राष्ट्रीय हित पहले SKM की मांगें

SKM ने सरकार के सामने निम्नलिखित प्रमुख मांगें रखी हैं:

  • अमेरिका के साथ किसी भी व्यापार समझौते का मसौदा संसद में प्रस्तुत किया जाए।
  • राज्य सरकारों से आधिकारिक रूप से विचार-विमर्श किया जाए।
  • किसान और श्रमिक संगठनों को प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिले।
  • समझौते की सार्वजनिक रूप से समीक्षा की जाए और इससे जुड़े पारदर्शिता मानकों का पालन किया जाए।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

कृषि नीति विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ऐसे समझौते बिना सार्वजनिक परामर्श और संसद की मंजूरी के किए जाते हैं, तो इससे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन होता है और यह संविधान की भावना के विरुद्ध है।

जनता की भागीदारी जरूरी

इस मुद्दे को लेकर नागरिक समाज, किसान नेता, श्रमिक संगठन और छात्र संगठन भी एकजुट हो रहे हैं। वे चाहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था और जनजीवन से जुड़े इतने बड़े निर्णय पारदर्शी तरीके से लिए जाएं। किसान संगठनों का कहना है कि लोकतंत्र में नीतियाँ जनता और जनप्रतिनिधियों की सहमति से बननी चाहिए, न कि गुप्त बैठकों और कॉरपोरेट लॉबिंग के जरिएसंयुक्त किसान मोर्चा की यह मांग सिर्फ किसानों की नहीं बल्कि देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा की बात है। यदि केंद्र सरकार अमेरिका के साथ कोई व्यापार समझौता करती है, तो उसका सीधा असर किसानों, श्रमिकों और छोटे व्यवसायों पर पड़ेगा। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि कोई भी समझौता संसद में पारित हो, राज्यों की राय ली जाए, और जनता को विश्वास में लिया जाए।

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