भारतीय राजनीति में एक बार फिर से गर्मी बढ़ गई है, और इस बार कारण बने हैं शिवसेना (यूबीटी) के वरिष्ठ नेता संजय राउत। उनके एक चौंकाने वाले दावे ने राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है।
क्या है पूरा मामला?
संजय राउत ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सितंबर 2025 में रिटायर हो सकते हैं। उनका कहना है कि हाल ही में प्रधानमंत्री का नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में दौरा सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं थी, बल्कि संघ प्रमुख मोहन भागवत को “टाटा-बाय बाय” कहने की यात्रा थी।
राउत ने यह भी कहा कि आरएसएस नेतृत्व परिवर्तन चाहता है, और इसीलिए बीजेपी के नए अध्यक्ष को लेकर भी तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ
संजय राउत ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आज़ादी के बाद केवल दो प्रधानमंत्रियों ने आरएसएस मुख्यालय का दौरा किया है –
अटल बिहारी वाजपेयी (2000)
नरेंद्र मोदी (2025)
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उन्होंने सवाल उठाया – क्या ये केवल एक संयोग है? या सत्ता में बदलाव की कोई शुरुआत?
बीजेपी का तीखा जवाब
भाजपा ने संजय राउत के इस बयान को पूरी तरह खारिज कर दिया है।
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने पलटवार करते हुए कहा:
“ये दावा पूरी तरह से गलत है। मोदी जी 2029 तक और उसके बाद भी प्रधानमंत्री बने रहेंगे।”
उन्होंने आगे कहा:
“हमारी भारतीय परंपरा में पिता के जीवित रहते हुए उत्तराधिकारी की बात नहीं की जाती। यह तो मुगल मानसिकता है।”
फडणवीस ने संजय राउत पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का आरोप लगाया और कहा कि मोदी जी की लोकप्रियता और नेतृत्व को लेकर कोई भ्रम नहीं है – देश की जनता ने तीन बार स्पष्ट बहुमत देकर यह साबित कर दिया है।
राजनैतिक हलचल और अटकलें
इस बयान के बाद सोशल मीडिया से लेकर टीवी डिबेट तक PM मोदी के रिटायरमेंट को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है।
हालांकि, पीएम मोदी की कार्यशैली, ऊर्जा और लगातार व्यस्त कार्यक्रमों को देखकर ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि वे जल्द ही राजनीति से विराम लेने वाले हैं।
सच्चाई क्या है?
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह बयान या तो रणनीतिक दबाव बनाने के लिए है या फिर विपक्ष के भीतर की बढ़ती बेचैनी का संकेत।
मोदी की लोकप्रियता और बीजेपी के चुनावी मशीनरी की ताकत को देखते हुए, विपक्ष को हर छोटी-बड़ी गतिविधि में बदलाव की उम्मीद दिखती है।
संजय राउत का यह बयान सिर्फ एक टिप्पणी नहीं, बल्कि राजनीति में संभावनाओं, संदेशों और सियासी चालों की झलक है।
लेकिन जब तक नरेंद्र मोदी खुद कुछ न कहें, तब तक यह महज़ एक राजनीतिक शगुफा ही माना जाएगा।
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