महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। राज्य के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार (15 अप्रैल) की रात महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अध्यक्ष राज ठाकरे से उनके निवास पर मुलाकात की। ये मुलाकात करीब पौने दो घंटे चली और इसके कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं, खासकर मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव के संदर्भ में।
क्यों अहम है यह मुलाकात?
एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे के बीच यह मुलाकात सामान्य प्रतीत हो सकती है, लेकिन इसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। माहिम विधानसभा चुनाव के बाद दोनों नेताओं के बीच रिश्ते में खटास की खबरें थीं। वजह थी शिंदे गुट के सदा सरवणकर को मैदान में उतारना, जो सीधे तौर पर राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे के खिलाफ थे।
अमित ठाकरे यह चुनाव हार गए थे और उसके बाद से यह पहली बार है कि शिंदे और राज ठाकरे आमने-सामने मिले हैं। ऐसे में यह बैठक महज़ “सद्भावना” तक सीमित नहीं मानी जा रही, बल्कि इसके ज़रिए महाराष्ट्र के राजनीतिक समीकरणों में संभावित बदलाव के संकेत देखे जा रहे हैं।
बैठक में क्या हुआ?
एकनाथ शिंदे रात 9:30 बजे राज ठाकरे के घर पहुंचे और बैठक करीब 11:15 बजे तक चली। बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में शिंदे ने कहा,
“राज ठाकरे से मिलकर बालासाहेब ठाकरे की यादें ताजा हो गईं। हमने एक दौर में साथ काम किया है, उस दौर की बातें हुईं। यह मुलाकात पूरी तरह से सौहार्दपूर्ण और निजी थी।”
राज्य मंत्री और शिंदे खेमे के करीबी उदय सामंत ने भी इस मुलाकात के बाद कहा,
“अगर राज ठाकरे हमारे साथ आते हैं तो यह हमारे लिए सौभाग्य की बात होगी। शिंदे और राज ठाकरे का रिश्ता वर्षों पुराना है।”
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राजनीतिक पृष्ठभूमि और दरार की चर्चा
माहिम विधानसभा सीट पर सदा सरवणकर की उम्मीदवारी ने शिंदे और ठाकरे के बीच राजनीतिक दूरी बढ़ा दी थी। यह वही सीट थी जहां अमित ठाकरे चुनाव मैदान में थे। माना जा रहा था कि अगर सरवणकर की उम्मीदवारी वापस ली जाती तो ठाकरे-शिंदे के रिश्ते बेहतर रहते।
चुनाव में अमित ठाकरे की हार ने इस दरार को और गहरा कर दिया। लेकिन अब जब शिंदे खुद पहल करके राज ठाकरे से मिले हैं, तो यह इस बात का संकेत माना जा रहा है कि दोनों नेता फिर से रिश्तों को सुधारने की दिशा में बढ़ना चाहते हैं — खासकर BMC चुनावों की पृष्ठभूमि में।
क्या है BMC चुनाव की अहमियत?
मुंबई महानगरपालिका देश की सबसे अमीर नगर निगम है। बीएमसी पर दशकों से शिवसेना (पहले उद्धव गुट, अब शिंदे गुट) का कब्जा रहा है। लेकिन इस बार बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी, उद्धव ठाकरे गुट और एमएनएस सभी इसमें अपनी ताकत झोंकने वाले हैं।
ऐसे में अगर राज ठाकरे और एकनाथ शिंदे एक मंच पर आते हैं, तो मराठी वोट बैंक को मजबूत करने में मदद मिल सकती है। यही कारण है कि इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ी है।
क्या बनेगा गठबंधन?
हालांकि एकनाथ शिंदे ने किसी भी राजनीतिक गठबंधन की बात से इंकार किया है, लेकिन जिस तरह से यह मुलाकात हुई और उसके बाद सकारात्मक बयान आए, उससे यह अटकलें तेज हैं कि आगामी चुनावों में कोई नया मोर्चा सामने आ सकता है।
राज ठाकरे की पार्टी का प्रभाव सीमित है, लेकिन मराठी मतदाता वर्ग में उनकी पकड़ अब भी मानी जाती है। अगर शिंदे, बीजेपी और एमएनएस एक साथ आते हैं, तो यह उद्धव ठाकरे की शिवसेना और विपक्षी गठबंधन के लिए चुनौती बन सकता है।
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?
राजनीतिक विश्लेषक संजय देशमुख का कहना है,
“महाराष्ट्र की राजनीति में चेहरे से ज़्यादा समीकरण मायने रखते हैं। शिंदे-राज ठाकरे की यह बैठक एक संदेश है – दोनों नेता एक-दूसरे के साथ भविष्य में काम करने के लिए तैयार हैं।”
भले ही एकनाथ शिंदे ने इसे “सद्भावनापूर्ण मुलाकात” बताया हो, लेकिन महाराष्ट्र और देशभर के राजनीतिक हलकों में इस मुलाकात के मायने निकाले जा रहे हैं। बालासाहेब ठाकरे की विरासत के नाम पर राजनीति करने वाले दो बड़े चेहरे – शिंदे और राज – अगर एक साथ आते हैं, तो यह आने वाले चुनावों में बड़ा असर डाल सकता है।
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