देश के संवैधानिक इतिहास में एक और अहम अध्याय जुड़ने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भर दी है, जो भारतीय मुस्लिम समाज की कानूनी स्वतंत्रता और धार्मिक आस्था के बीच संतुलन को लेकर सवाल उठाती है। मामला है—क्या कोई मुस्लिम, बिना इस्लाम धर्म छोड़े, अपनी संपत्ति का बंटवारा शरीयत के बजाय भारतीय धर्मनिरपेक्ष उत्तराधिकार कानून (Indian Succession Act) के तहत कर सकता है?
यह मामला न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता के अधिकार से जुड़ा है, बल्कि भारतीय समाज में चल रही धर्म बनाम कानून की बहस को भी एक नई दिशा दे सकता है।
याचिकाकर्ता कौन हैं और उन्होंने क्या मांगा है?
केरल के त्रिशूर जिले के रहने वाले नौशाद के.के. नाम के मुस्लिम व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने कोर्ट से यह मांग की है कि उन्हें बिना इस्लाम छोड़े, वसीयत और उत्तराधिकार के मामलों में शरीयत कानून की बजाय धर्मनिरपेक्ष उत्तराधिकार कानून के तहत आने की इजाजत दी जाए।
- मुस्लिमों को संपत्ति की वसीयत करते समय शरीयत की सीमाओं से मुक्त किया जाए।
- उन्हें भी वही अधिकार मिले जो भारत के अन्य धर्मों के लोगों को मिलते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत उन्हें संपत्ति की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
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शरीयत बनाम भारतीय उत्तराधिकार कानून – क्या है फर्क?
शरीयत के तहत, कोई मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का केवल एक-तिहाई हिस्सा वसीयत के माध्यम से दे सकता है। वो भी केवल उन्हीं लोगों को, जो पहले से उसके कानूनी उत्तराधिकारी न हों। बाकी दो-तिहाई हिस्सा इस्लामी उत्तराधिकार के निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार कानूनी उत्तराधिकारियों में बंटता है।
वहीं दूसरी ओर, भारतीय उत्तराधिकार कानून किसी भी व्यक्ति को अपनी पूरी संपत्ति, किसी भी व्यक्ति या संस्था को वसीयत के जरिए देने की पूरी छूट देता है – चाहे वह उसका कानूनी उत्तराधिकारी हो या न हो।
समान अधिकारों की लड़ाई
नौशाद का तर्क है कि शरीयत के इस प्रतिबंध से उनकी संपत्ति पर स्वामित्व की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 (भेदभाव निषेध) का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया कि यह कानून मुसलमानों को उन अधिकारों से वंचित करता है जो अन्य समुदायों को प्राप्त हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि यहां तक कि जो मुसलमान विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत शादी करते हैं, उन्हें भी वसीयत में यह स्वतंत्रता नहीं दी जाती।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया और आगे की प्रक्रिया
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने याचिका को संज्ञान में लेते हुए केंद्र सरकार और केरल सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों से जवाब मांगा है।
साथ ही, इस याचिका को दो अन्य लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ने का आदेश दिया गया है—
- सफिया पी.एम. की याचिका: वह एक नास्तिक मुस्लिम महिला हैं, जिन्होंने शरीयत से हटकर संपत्ति बांटने की मांग की थी।
- कुरान सुन्नत सोसाइटी की याचिका (2016): इसमें भी शरीयत कानून के मजबूरन अनुप्रयोग को चुनौती दी गई थी।
अब सुप्रीम कोर्ट तीनों मामलों की संयुक्त सुनवाई करेगा।
क्या है इस याचिका का व्यापक सामाजिक प्रभाव?
यह मामला केवल एक व्यक्ति की संपत्ति की आज़ादी से जुड़ा नहीं है, बल्कि देशभर के उन लाखों मुसलमानों के लिए मिसाल बन सकता है जो धर्म से जुड़े रहते हुए कानूनन स्वतंत्रता चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का इंतजार न सिर्फ याचिकाकर्ताओं को है, बल्कि उन सभी नागरिकों को है जो धर्मनिरपेक्षता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच बेहतर संतुलन की मांग करते हैं। यह मामला धर्म और संविधान के टकराव की बजाय, उनके सह-अस्तित्व की दिशा में एक बड़ा कदम बन सकता है।
यदि कोर्ट मुस्लिम समुदाय को यह छूट देता है कि वे अपनी आस्था बनाए रखते हुए धर्मनिरपेक्ष उत्तराधिकार कानून को चुन सकें, तो यह भारतीय न्याय व्यवस्था में एक नया मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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