सिकल सेल रोग की समय पर पहचान से बच्चों की जान बचाना संभव, ICMR अध्ययन का खुलासा

भारत में बच्चों की मृत्यु दर को कम करने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि सामने आई है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक ताज़ा अध्ययन में पाया गया है कि सिकल सेल रोग की समय पर पहचान और इलाज से बच्चों की मृत्यु दर को 20-30% से घटाकर 5% से कम किया जा सकता है। यह जानकारी भारत में बाल स्वास्थ्य और अनुवांशिक रोगों के इलाज में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखी जा रही है।

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सिकल सेल रोग क्या है?

सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease) एक अनुवांशिक रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य गोलाकार के बजाय हंसिए (sickle) के आकार की हो जाती हैं। इससे रक्त प्रवाह बाधित होता है और अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे तेज दर्द, संक्रमण, और अंग क्षति जैसे गंभीर लक्षण हो सकते हैं। यह रोग खासकर आदिवासी समुदायों और कुछ विशेष जातीय समूहों में अधिक पाया जाता है।

ICMR की नवजात स्क्रीनिंग रिपोर्ट

ICMR द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 से 2024 के बीच 63,053 नवजात शिशुओं की स्क्रीनिंग की गई। यह जांच मुंबई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोहेमेटोलॉजी द्वारा ICMR के सहयोग से देश के सात उच्च प्रभावित क्षेत्रों में की गई थी। इन क्षेत्रों का चयन उन जिलों से किया गया था, जहां सिकल सेल रोग की व्यापकता सबसे अधिक है।

समय पर पहचान और उपचार का महत्व

विशेषज्ञों का कहना है कि जन्म के तुरंत बाद सिकल सेल रोग की पहचान हो जाने पर बच्चे को समय पर सुलभ उपचार और सावधानी दी जा सकती है। इसमें शामिल हैं

  • संक्रमण से बचाने के लिए नियमित दवाइयाँ और वैक्सीनेशन
  • फोलिक एसिड सप्लीमेंट्स
  • आवश्यकतानुसार ब्लड ट्रांसफ्यूजन
  • निरंतर चिकित्सा निगरानी और परामर्श

इन उपायों से बच्चों को गंभीर जटिलताओं से बचाया जा सकता है और उनकी सामान्य वृद्धि और विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।

क्यों है यह अध्ययन महत्वपूर्ण?

भारत सरकार द्वारा सिकल सेल उन्मूलन मिशन 2047 की घोषणा के बाद यह अध्ययन बेहद प्रासंगिक हो गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यदि नवजात स्तर पर सिकल सेल रोग की पहचान की जाए, तो न केवल मृत्यु दर को कम किया जा सकता है, बल्कि आजीवन इलाज की लागत भी घटाई जा सकती है।

यह पहल विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है जहां:

  • स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित है,
  • गरीबी और अशिक्षा के कारण समय पर इलाज नहीं हो पाता,
  • और जहां आदिवासी समुदायों में सिकल सेल बीमारी का प्रसार अधिक है।

नीति निर्माताओं के लिए संदेश

यह अध्ययन नीति निर्माताओं को यह सोचने पर मजबूर करता है कि अब समय आ गया है कि नवजात स्क्रीनिंग को अनिवार्य किया जाए, खासकर उन राज्यों और जिलों में जहां इस रोग का प्रभाव अधिक है जैसे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा, मध्यप्रदेश, झारखंड, गुजरात और तेलंगाना।सरकारी अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सिकल सेल जांच की सुविधा सुनिश्चित कर, जन्म के बाद तुरंत जांच कराई जानी चाहिए। ICMR का यह अध्ययन भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक उम्मीद की किरण है। अगर नवजातों में सिकल सेल रोग की समय पर जांच और उपचार किया जाए, तो हजारों बच्चों की जान बचाई जा सकती है। साथ ही, इससे स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ कम होगा और समाज की उत्पादकता में वृद्धि होगी।

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