विजय माल्या की भारत वापसी की पेशकश: बोले, “मिले निष्पक्ष सुनवाई तो लौटूंगा”

लगभग एक दशक की चुप्पी तोड़ते हुए भगोड़े घोषित व्यवसायी विजय माल्या ने हाल ही में लंदन में रिकॉर्ड एक पॉडकास्ट में अपनी बात सार्वजनिक की है। ‘किंग ऑफ गुड टाइम्स’ के नाम से पहचाने जाने वाले माल्या ने साफ कहा कि अगर उन्हें भारत में निष्पक्ष सुनवाई और सम्मानजनक जीवन की गारंटी दी जाए, तो वे देश लौटने के लिए तैयार हैं।

माल्या 2016 से लंदन में रह रहे हैं। किंगफिशर एयरलाइंस के दिवालिया हो जाने के बाद उन्होंने भारत छोड़ दिया था। इसके बाद उन पर भगोड़ा आर्थिक अपराधी का टैग लगा और उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ।

“भारत में मुकदमे लंबा खिंचते हैं, यह न्याय नहीं”

पॉडकास्ट में माल्या ने कहा, “भारत में हिरासत और मुकदमे वर्षों तक चल सकते हैं। मैं तब लौटूंगा जब मुझे कानून के तहत निष्पक्षता और एक सामान्य जीवन की गारंटी मिले।” उन्होंने जोर देकर कहा कि वह न्याय से भाग नहीं रहे, बल्कि न्याय पाने के लिए प्रयासरत हैं।

“मैंने चुराया नहीं, बैंकों को चुका दिया”

माल्या ने दावा किया कि उन्होंने बैंकों से केवल 6,203 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था, जबकि भारत सरकार ने 14,131.6 करोड़ रुपये की वसूली की पुष्टि की है। उन्होंने कहा, “मैंने चोरी नहीं की, बल्कि बैंकों का पैसा लौटाया है। फिर भी मुझे अपराधी घोषित कर दिया गया।”

उन्होंने 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट, बढ़ती ईंधन कीमतों और सरकारी नीतियों को किंगफिशर एयरलाइंस की बर्बादी का जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना है कि यह एक “परफेक्ट स्टॉर्म” था जिसमें वे फंस गए।

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कर्मचारियों से माफी

माल्या ने किंगफिशर एयरलाइंस के कर्मचारियों से उनके बकाया वेतन को लेकर माफी मांगी। उन्होंने कहा कि 2012 से 2015 के बीच उन्होंने वेतन भुगतान के लिए 260 करोड़ रुपये देने की पेशकश की थी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। उन्होंने यह भी कहा, “मैं इसके लिए पूरी जिम्मेदारी लेता हूं और गहरा खेद व्यक्त करता हूं।”

कानूनी चुनौतियां अभी बाकी हैं

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि माल्या की भारत वापसी आसान नहीं होगी। बर्जन लॉ के वरिष्ठ पार्टनर केतन मुखीजा ने कहा, “अगर माल्या भारत लौटते हैं तो कानूनी प्रक्रिया तुरंत शुरू हो जाएगी। उन्हें मौजूदा गैर-जमानती वारंट और भगोड़ा टैग को चुनौती देनी होगी।” वहीं, लिटिल एंड कंपनी के अजय खतलावाला ने कहा कि माल्या संविधान के अनुच्छेद 21 (निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार) का हवाला दे सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी नीयत कोर्ट में साबित करनी होगी।

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