वक्फ संशोधन कानून 2025 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार, 16 अप्रैल को सुनवाई करेगा। इससे पहले, एक और अहम रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है, जो इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती है। यह याचिका गुरुग्राम के गुरुद्वारा सिंह सभा के अध्यक्ष और सिख धर्मगुरु दया सिंह ने दाखिल की है।
दया सिंह का कहना है कि संशोधित वक्फ कानून धर्म के आधार पर अनुचित भेदभाव करता है और यह संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में उन्होंने गैर-मुस्लिमों को वक्फ संपत्तियों को दान करने से रोकने वाले प्रावधानों को चुनौती दी है।
क्या है मामला?
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 में एक ऐसा प्रावधान जोड़ा गया है, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को वक्फ को संपत्ति दान करने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि उसने कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन किया हो। दया सिंह ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति पर अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन बताया है।
उन्होंने कहा, “यह कानून गैर-मुस्लिमों को उनकी अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धार्मिक दान की भावना से वंचित करता है। यह न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के भी विपरीत है।”
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सिख परंपरा और अंतर-धार्मिक दान
दया सिंह ने अपनी याचिका में सिख धर्म की उस परंपरा का उल्लेख किया है, जिसमें सभी धर्मों और जातियों की सेवा और सहायता को प्राथमिकता दी जाती है। उनका कहना है कि सिख धर्म में दान और चैरिटी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, चाहे वह किसी भी धार्मिक संगठन के लिए हो।
दया सिंह खुद को अंतर-धार्मिक सद्भाव का समर्थक बताते हैं और विभिन्न धार्मिक संस्थाओं को दान देने की अपनी इच्छा को कानून द्वारा प्रतिबंधित किया जाना उन्हें अस्वीकार्य लगता है।
हिंदू-सिख धार्मिक ट्रस्ट बनाम वक्फ बोर्ड
याचिकाकर्ता ने इस बात पर भी सवाल उठाए हैं कि जहां हिंदू और सिख धार्मिक ट्रस्टों को एक स्वायत्त कानूनी दर्जा प्राप्त है, वहीं मुस्लिम वक्फ संस्थाओं में सरकार का हस्तक्षेप लगातार बढ़ रहा है।
उन्होंने तर्क दिया कि, “यह कानून सरकार को वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करने का एक और औचित्य देता है, जो न केवल मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रभाव डालता है, बल्कि एक असंतुलित व्यवस्था को जन्म देता है।”
दया सिंह ने स्पष्ट किया कि सरकारें दान के नाम पर नागरिकों की धार्मिक भावना को नियंत्रित नहीं कर सकतीं। उनका मानना है कि यह कानून लोगों की निजी धार्मिक आस्था और दान की इच्छा पर गैरजरूरी अंकुश लगाता है।
संवैधानिक सवाल और अनुच्छेद 14
याचिका में यह भी कहा गया है कि वक्फ संशोधन अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता।
दया सिंह ने कहा कि “इस कानून में ऐसा वर्गीकरण किया गया है जो सिर्फ धर्म के आधार पर है और यह पूरी तरह असंवैधानिक है।”
आगे क्या?
अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 16 अप्रैल को सुनवाई करेगा। देश की नजर इस अहम मामले पर टिकी है, क्योंकि यह न केवल एक धर्म विशेष से जुड़ा है, बल्कि भारत के संविधान, धर्मनिरपेक्षता और नागरिक अधिकारों से भी सीधा जुड़ा हुआ है।
यह याचिका वक्फ अधिनियम पर बहस को और व्यापक बना सकती है और इससे धार्मिक ट्रस्टों की भूमिका, सरकार की सीमाएं और नागरिक स्वतंत्रता जैसे कई अहम सवाल उठ सकते हैं।
क्या सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को सुनवाई योग्य मानता है और अगर हां, तो इसका असर पूरे देश की धार्मिक नीतियों और ट्रस्टों के प्रबंधन पर पड़ सकता है।
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