असदुद्दीन ओवैसी के हालिया बयान “हम इस सरज़मीन पर पैदा हुए और इसी पर मरेंगे…” ने एक बार फिर इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय मुसलमानों की भूमिका को लेकर बहस को तेज कर दिया है। उन्होंने इस बयान के जरिए यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों की जड़ें कितनी गहरी हैं और वे इस देश के स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा रहे हैं।

भारत की आज़ादी में मुसलमानों की भूमिका
ओवैसी ने अपने भाषण में मक्का मस्जिद के इमाम मौलवी अल्लाहुद्दीन साहब का जिक्र किया, जो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी शख्सियत थे। उन्होंने बताया कि जब अंग्रेजों ने भारतीयों को कैद कर रखा था, तब मौलवी अल्लाहुद्दीन ने हैदराबाद के लोगों को मक्का मस्जिद से रेजीडेंसी (ब्रिटिश प्रशासनिक मुख्यालय) की ओर कूच करने का आह्वान किया।
यह रमज़ान और जुमे का दिन था, जब यह ऐतिहासिक आंदोलन शुरू हुआ। मौलवी अल्लाहुद्दीन और उनके समर्थकों ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ बगावत की और स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
यह भी पढ़ें: हम इस सरज़मीन पर पैदा हुए और इसी पर रहेंगे – Asaduddin Owaisi का बड़ा बयान
1857 का स्वतंत्रता संग्राम और मुस्लिम क्रांतिकारी
इतिहासकारों के अनुसार, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बहादुर शाह ज़फर, मौलवी अहमदुल्लाह शाह, टंट्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहिब और बेगम हज़रत महल जैसी कई महत्वपूर्ण शख्सियतों ने योगदान दिया था।
मौलवी अल्लाहुद्दीन और उनके साथी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह के पहले नायक बने। उनका यह आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय जनता की आवाज़ बना और धीरे-धीरे पूरे देश में क्रांति की चिंगारी भड़की।
मौलवी अल्लाहुद्दीन की शहादत
ब्रिटिश सरकार ने मौलवी अल्लाहुद्दीन को राजद्रोही घोषित किया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में उन्हें फांसी दे दी गई, लेकिन उनकी शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और तेज कर दिया।
उनकी बहादुरी की मिसाल आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। हालांकि, मुख्यधारा के इतिहास में उनका नाम उस तरह से नहीं लिया जाता, जैसा कि अन्य स्वतंत्रता सेनानियों का।
असदुद्दीन ओवैसी का बयान और उसका संदर्भ
असदुद्दीन ओवैसी का बयान न केवल एक राजनीतिक प्रतिक्रिया थी, बल्कि इतिहास की उस सच्चाई को उजागर करने की कोशिश भी थी, जिसे अक्सर भुला दिया जाता है।
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि:
- भारतीय मुसलमानों ने भी इस देश की आज़ादी में बराबर योगदान दिया है।
- मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक समझने की मानसिकता गलत है।
- 1857 की क्रांति में कई मुस्लिम नेताओं ने अपने प्राणों की आहुति दी थी।
समाज में व्यापक बहस
ओवैसी के इस बयान के बाद राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर कई बहसें शुरू हो गई हैं। कई लोग इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की भूमिका को याद दिलाने की एक पहल मान रहे हैं, जबकि कुछ लोग इसे राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित बयान बता रहे हैं।
लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हर धर्म, संप्रदाय और जाति के लोगों ने योगदान दिया। इसे किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं किया जा सकता।
संबंधित पोस्ट
दिल्ली में बिजली संकट: आप ने भाजपा सरकार पर साधा निशाना
ईद-उल-फितर मनाने आए मुस्लिमों पर हिंदुओं ने की पुष्प वर्षा
अखिलेश यादव का योगी सरकार पर हमला, बैरिकेडिंग पर सवाल