क्या कांग्रेस पार्टी शशि थरूर जैसे विचारशील नेताओं को जगह दे पाएगी?

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इन दिनों एक अजीब सी खामोशी से घिरी हुई है, लेकिन इस खामोशी के पीछे राजनीतिक हलचल लगातार जारी है। इस हलचल के केंद्र में हैं शशि थरूर एक ऐसा नाम, जो सिर्फ एक सांसद नहीं, बल्कि लेखक, पूर्व राजनयिक, विचारक और वैश्विक वक्ता के रूप में भी पहचाना जाता है।थरूर का कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ना सिर्फ एक राजनीतिक प्रतीक नहीं था, बल्कि यह एक स्पष्ट संदेश था कि वे पार्टी के भीतर बदलाव और वैचारिक खुलापन चाहते हैं। लेकिन अब बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस पार्टी वास्तव में ऐसे नेताओं को आगे बढ़ने देना चाहती है?

शशि थरूर एक असहज नेतृत्व के प्रतीक?

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई ने इस विषय पर अहम टिप्पणी की है। उनके अनुसार, कांग्रेस पार्टी में ‘सोचने-समझने वाले नेताओं’ की भारी कमी है। शशि थरूर जैसे नेता इस खालीपन को भर सकते हैं, लेकिन पार्टी ऐसे स्वतंत्र विचारों से असहज महसूस करती है।किदवई ने यह भी कहा कि हाईकमान कल्चर आज भी कांग्रेस पर पूरी तरह हावी है। इसका मतलब है कि जो नेता सवाल उठाते हैं, या अलग सोचते हैं, उन्हें या तो दरकिनार कर दिया जाता है या चुप करा दिया जाता है

थरूर की लोकप्रियता सिर्फ अंग्रेज़ी नहीं, जमीनी पकड़ भी

शशि थरूर को अक्सर “अंग्रेज़ीदां नेता” कहा जाता है, लेकिन उनकी लोकप्रियता इससे कहीं ज़्यादा गहरी है।

  • केरल में उनकी जमीनी पकड़ मजबूत है, जहाँ से वे लगातार लोकसभा जीतते रहे हैं।
  • शहरी युवाओं में उनका क्रेज़ किसी सेलिब्रिटी जैसा है।
  • वे बार-बार पार्टी के भीतर संगठनात्मक सुधार, डिजिटल रणनीति, और युवाओं की भागीदारी जैसे मुद्दे उठाते रहे हैं।
  • लेकिन यही सवाल उठता है क्या कांग्रेस ने कभी उन्हें पूरी तरह से स्वीकार किया?

कांग्रेस का नेतृत्व संकट नई सोच बनाम परंपरा

आज जब कांग्रेस को अपनी साख और संगठनात्मक ताकत दोनों को पुनर्स्थापित करने की ज़रूरत है, तब भी वह नई सोच को जगह देने में संकोच कर रही है।

  • असहमति को “गद्दारी” के रूप में देखना,
  • नए विचारों को “चुनौती” मानना,
  • और प्रश्न पूछने वालों को दरकिनार करना,

यही रवैया कांग्रेस को बार-बार चुनावी असफलताओं की ओर ले जा रहा है।

अगर बदलाव नहीं हुआ तो क्या होगा?

अब सवाल यह है कि यदि पार्टी नेतृत्व ने अपनी नीति नहीं बदली तो क्या थरूर जैसे नेता कांग्रेस में बने रहेंगे?

  • क्या वे किसी नई राजनीतिक मंच की तलाश करेंगे?
  • या वे धीरे-धीरे राजनीति से किनारा कर लेंगे?
  • क्या उनकी आवाज दबा दी जाएगी, या उन्हें वैचारिक सहयोगियों के साथ नया रास्ता चुनना पड़ेगा?

इन सवालों के जवाब भारतीय राजनीति की दिशा तय करेंगे, खासकर उस दौर में जब देश को नई वैचारिक राजनीति और विश्वदृष्टि वाले नेताओं की ज़रूरत है।

कांग्रेस के लिए एक मौका

शशि थरूर कांग्रेस के लिए सिर्फ एक चेहरा नहीं, बल्कि एक अवसर हैं।एक ऐसा अवसर जो पार्टी को बौद्धिक रूप से मज़बूत, युवाओं के लिए आकर्षक और वैश्विक रूप से प्रासंगिक बना सकता है।अगर कांग्रेस ने अब भी इस अवसर को नहीं पहचाना, तो वह और भी वैचारिक और नेतृत्व संकट में फंस सकती है।

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