राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS ने अपने सौ साल पूरे कर लिए हैं। इस खास अवसर पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों को संबोधित किया और संघ के 100 साल के सफर पर अपने विचार साझा किए।

संघ का संघर्ष और स्वयंसेवकों की भूमिका
मोहन भागवत ने कहा कि संघ का यह सफर आसान नहीं था। कई कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ सामने आईं, लेकिन हर बार स्वयंसेवकों ने अपनी मेहनत और तपस्या के दम पर इन कठिनाइयों को पार किया। भागवत ने जोर देकर कहा कि संघ की सबसे बड़ी शक्ति ना पैसा है, ना कोई ताक़तवर पद, बल्कि संघ की ताक़त है हर स्वयंसेवक का त्याग और समर्पण।
100 सालों की मेहनत का महत्व
सरसंघचालक ने बताया कि पिछले सौ वर्षों की मेहनत और सेवा ने संघ को आज इस मुकाम तक पहुँचाया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आने वाले समय में भी यही त्याग, सेवा और समर्पण संघ को मजबूत बनाएंगे और भारत को और भी प्रगति की दिशा में ले जाएंगे।
संगठनों की असली ताकत
भागवत जी का संदेश हमें यह सिखाता है कि संगठनों की असली ताकत पदों या शक्ति में नहीं होती, बल्कि उसके लोगों की ईमानदारी, समर्पण और मेहनत में होती है। उन्होंने सभी स्वयंसेवकों से अपील की कि वे अपने कर्तव्यों और मूल्यों के प्रति हमेशा सजग रहें और देश की सेवा में अपनी भूमिका निभाते रहें।
स्वयंसेवकों के लिए प्रेरणा
इस संबोधन का मुख्य उद्देश्य स्वयंसेवकों को प्रेरित करना और उन्हें याद दिलाना था कि संघ की स्थिरता और सफलता संगठित प्रयास और व्यक्तिगत समर्पण पर निर्भर करती है। मोहन भागवत ने यह भी कहा कि जो मूल्य और संस्कार संघ ने स्वयंसेवकों में विकसित किए हैं, वही भारतीय समाज की मजबूती और प्रगति का आधार हैं।
भविष्य की दिशा और संदेश
सरसंघचालक ने स्पष्ट किया कि संघ का मिशन केवल इतिहास में महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह भविष्य के लिए भी सशक्त संदेश और मार्गदर्शन प्रदान करता है। संघ के 100 साल पूरे होने पर यह संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि संगठन की असली ताकत उसके लोगों के दिलों और उनके समर्पित प्रयासों में निहित होती है।
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