सरकार ने हाल ही में जीएसटी सुधारों के तहत पान मसाला, गुटखा, सिगरेट, तंबाकू, शुगर ड्रिंक और लग्ज़री वस्तुओं पर 40% टैक्स लगाने का फैसला किया है। इसे सरकार “सेहत बचाने की पहल” बता रही है, लेकिन आम जनता का मानना है कि यह सीधा उनकी जेब पर वार है।
सरकार का तर्क सेहत पहले
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि तंबाकू और निकोटिन आधारित उत्पाद, साथ ही शुगर ड्रिंक्स और फास्ट फूड, सीधे तौर पर लोगों की सेहत को नुकसान पहुँचाते हैं। ऐसे में ऊँचा टैक्स लगाकर सरकार चाहती है कि लोग इन आदतों को छोड़ें और एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाएँ।
लग्ज़री पर टैक्स क्या ये सही कदम है?
सिर्फ नशे पर ही नहीं, बल्कि लग्ज़री कारों और महंगे उत्पादों पर भी टैक्स की मार पड़ी है। सरकार का तर्क है कि “अत्यधिक उपभोग” और “शौकिया खर्च” को नियंत्रित करने के लिए यह जरूरी है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या लग्ज़री टैक्स से वास्तव में सिर्फ अमीर ही प्रभावित होंगे या इसकी मार मध्यम वर्ग पर भी पड़ेगी?
जनता का गुस्सा जेब पर बोझ
जनता सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना कर रही है। लोगों का कहना है कि यह कदम “सेहत बचाने” के नाम पर लिया गया है, लेकिन असल में यह टैक्स कलेक्शन बढ़ाने की रणनीति है।अब तो जीना भी सरकार के गणित पर निर्भर हो गया है यह भावना आम आदमी के बीच तेजी से फैल रही है।
नया जीएसटी स्ट्रक्चर
नए सुधारों के तहत अब जीएसटी को केवल दो स्लैब 5% और 18% – में बांटा गया है। जबकि हानिकारक और लग्ज़री वस्तुओं पर 40% का विशेष टैक्स लगाया गया है। इससे टैक्स प्रणाली सरल होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन आम जनता का मानना है कि “सरलीकरण” की जगह यह “महंगाई” बढ़ा रहा है।
बड़ा सवाल सेहत बनाम मुनाफा
भले ही सरकार इसे जनता की भलाई से जोड़ रही हो, लेकिन असल सवाल यह है कि “क्या सेहत सुधारने के लिए केवल टैक्स ही काफी है?अगर सरकार वाकई लोगों की सेहत को लेकर चिंतित है, तो उसे स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने, जनजागरूकता अभियान चलाने और वैकल्पिक रोजगार योजनाओं पर भी ध्यान देना होगा।
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