कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक कार्यक्रम में चौंकाने वाली स्पष्टता के साथ स्वीकार किया कि 90 के दशक के बाद दलित और ओबीसी समुदाय कांग्रेस पार्टी से दूर होते चले गए। उन्होंने कहा कि ये वही तबका था, जो कभी कांग्रेस की रीढ़ हुआ करता था । लेकिन पार्टी उनके विश्वास को बनाए रखने में नाकाम रही।
हमने उनके हितों की रक्षा सही ढंग से नहीं की
राहुल गांधी ने यह बयान एक दलित समुदाय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दिया। उन्होंने साफ़ कहा, “हम उनका भरोसा खोते चले गए क्योंकि हमने कभी उनके हितों की रक्षा उस तरह नहीं की, जैसी करनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ किसी को नेता बना देने से दलितों और पिछड़ों की समस्याएं हल नहीं होतीं। “सच्चा बदलाव तभी आएगा जब इन समुदायों को नीति-निर्माण में बराबरी का हिस्सा दिया जाएगा,” राहुल गांधी ने कहा।
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आत्ममंथन का इशारा या नई रणनीति?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी का यह बयान कांग्रेस की बदली रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसमें अब पार्टी अपनी पुरानी गल्तियों को स्वीकार कर उन तबकों से दोबारा संवाद स्थापित करने की कोशिश कर रही है जो अब तक भाजपा या क्षेत्रीय दलों की ओर झुक चुके हैं।
आगे की राह
राहुल गांधी के इस बयान को विपक्षी एकता और सामाजिक न्याय की राजनीति के संदर्भ में भी देखा जा रहा है। कांग्रेस अब यह जताना चाहती है कि वह केवल सत्ता की नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की भी राजनीति करना चाहती है। राहुल गांधी का यह आत्ममंथन भरा बयान कांग्रेस की भविष्य की दिशा की ओर इशारा करता है। सवाल यह है कि क्या यह बदली हुई सोच ज़मीनी हकीकत में भी उतर पाएगी?
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